महाराष्ट्र विधान सभा में नेता विपक्ष ने पेन ड्राइव बम फोड़ा है। जिसमें वह वीडियो हैं, जो सत्ताधारी और अधिकारियों की मिलीभग के टूलकिट को उजागर करती हैं। इसका संदर्भ देते हुए देवेंद्र फडणवीस ने आरोप लगाया है कि, सरकारी वकील, पुलिस अधिकारी और सत्ता पक्ष के नेता, भाजपा नेताओं को झूठे प्रकरण में फंसाने की साजिश रच रहे थे। इसलिए इस प्रकरण की जांच सीबीआई को सौंपी जाए।
नेता विपक्ष देवेंद्र फडणवीस ने विधान सभा में पेन ड्राइव सौंपा है, जिसमें वह वीडियो है, जिसमें सरकारी वकील प्रवीण चव्हाण, एसीपी सुषमा चव्हाण, डीसीपी और नेताओं का संभाषण और उल्लेख है। देवेंद्र फणडवीस ने आरोप लगाया है कि, झूठे ड्रग्स प्रकरण में गिरीष महाजन को फंसाने के लिए सरकारी वकील ने षड्यंत्र रचा, इसमें सहायक पुलिस आयुक्त और पुलिस उपायुक्त का भी संभाषण है। इसके अलावा सरकारी पक्ष के कई नेताओं का नाम है।
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विधान सभा में देवेंद्र फडणवीस ने बताया कि, मेरे पास सभी साक्ष्य हैं, जिन्हें मैंने दिया है। इसमें एफआईआर, कागजी साक्ष्य, छापा कैसे डाला जाए यह सभी बातें सरकारी वकील खुद बता रहे हैं।
क्या है पेन ड्राइव में?
भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस द्वारा सरकारी वकील की बातचीत का जो वीडियो वायरल हुआ है। उसमें आरोप लगाया गया है कि, भाजपा नेता गिरीष महाजन को झूठे प्रकरण में फंसाना सत्तापक्ष, अधिकारियों का प्रमुख उद्देश्य था। इसमें उन पर मकोका लगाने के लिए फर्जी साक्ष्य और कागज तैयार किये गए थे। जिसके लिए सरकारी वकील का संवाद वीडियो में है…
वकील….
♦ हमें नीलेश पैसे देता था, गुंडागर्दी करना, डर का वातावरण तैयार करने के लिए कहता था।
♦ ड्रग्स का व्यवसाय करता है, यह वो कहेगा ना? ऐसा कहेगा तभी मकोका लगेगा। सट्टे के पैसे पर मकोका नहीं लगता। परंतु, सट्टे के पैसे से ड्रग्स कहेंगे तो मकोका लगेगा। एक ग्राम के एक लाख रुपए मिलते हैं, ऐसा कहने का।
♦ वो गिरीष महाजन का नाम लेने के लिए तैयार है ना? एक छोटा जवाब तैयार करता हूं। वो माफी का साक्षीदार बनने को तैयार है ना?
♦ ड्रग्स का नाम लिया तो मकोका फिट हो जाता है और ड्रग्स मिलना चाहिए ऐसा कहां है? बरामद होगा तभी आरोपी होता है, ऐसा नहीं है। पूरी तरह से संशय खड़ा करना है। शैक्षणिक संस्था है, वहां बड़ी संख्या में विद्यार्थी हैं इसलिए बड़ा मार्केट है, ऐसा कहना चाहिए। उसे हमने पैसे दिये हैं ना? सुनील गायकवाड, महेंद्र बागुल, सूर्यवंशी, रवि शिंदे ने उसकी बात नाथा भाऊ से करा दी है। ऐसा दिखाएं कि, जब तक संस्था हमारे कब्जे में है, तब तक करोड़ो रुपए कमा सकते हैं।
♦ सभी उत्तर मैंने लिखकर दिये थे, उसने गुमा दिये। गड़बड़ में और गड़बड़ कर दिया। पवार साहेब ने डीजी को कहा। कितनी मीटिंगें हुईं। सीपी को रात भर बैठाया। पवार साहेब रात भर यशवंतराव चव्हाण प्रतिष्ठान में थे, मैं पिछले दरवाजे से गया, उसने फोन लगाया। मैं गाड़ी में बैठ गया, तभी डीजी का फोन आया। सीएम, अजीत दादा, वलसे पाटील, एसीएस, डीजी थे। सीपी को रात भर बैठा के रखा। रजत नागपुर चला गया, फिर सीपी के फोन पर फोन आया।
♦ सब निगेटिव थे, मैंने कॉंपी दी। अंत में पवार साहेब से कहकर अधिकारी बदलवाया। अनिल देशमुख होते तो फायदा हो जाता था। पवार साहेब का ऐसा आदेश था कि, प्रवीण चव्हाण आया तो उसे एंटी चेंबर में बैठाओ। अनिल देशमुख का पत्ता भी मेरे बिना नहीं हिलता था।
♦ अजीत पवार सपोर्ट नहीं करते, लेकिन बड़े साहेब सब देख रहे हैं। कोई अच्छा अधिकारी है क्या? चार-पांच अच्छे अधिकारियों के नाम हो तो दें, ऐसा उन्होंने कहा।
एडवोकेट प्रवीण चव्हाण यह षड्यंत्र कैसे रच रहे हैं, इसका साक्ष्य सहायक पुलिस आयुक्त सुषमा चव्हाण से हुआ वार्तालाप है।
छापे में सहभागी होनेवाले पुलिस कर्मचारियों की पूरी व्यवस्था वो बता रहे हैं। किस राह से जाना हैं और क्या करना है, इसकी सूक्ष्म व्यवस्था सरकारी वकील ने समझाई है। सरकारी अतिथि गृह भी बुक करके दिया है। शाकाहारी/मांसाहारी भोजन तक की सूक्ष्म व्यवस्था, खाने और रहने की सूक्ष्म व्यवस्था और कमरा किसके नाम बुक करना है, नकद पैसे देने हैं, इसकी पूरी कहानी वे बता रहे हैं। इसके लिए किसी की सहायता लगती है तो खडसे साहब की लो, ऐसा निर्देश भी दिया है। खडसे साहब पूरा पैसा देंगे, ऐसा भी उन्होंने कहा है।
♦ गिरीष महाजन नहीं फंस रहे हैं। सीपी को हटाने के सिवाय पर्याय नहीं है। डिजी को मिलनेवाले हैं। नाम नहीं ले रहे थे, साहेब को फोन करके मीटिंग फिक्स की। मकोका के लिए सुनने तैयार नहीं थे, एक दिन में एफआईआर ड्राफ्ट करके दिया, खुद अध्ययन करके धाराएं लगाई, कई धाराएं लगाई, लेकिन उसने उसे बर्बाद कर दिया।
♦ अनिल देशमुख ने ट्रांसफर में पैसे कमाए, सौ करोड़ रुपए से भी अधिक, लगभग 250 करोड़ रुपए तो हैं ही। सिर्फ ट्रांसफर में ही नहीं, गाड़ी खरीदने में, निर्माण के टेंडर जैसे बहुत सारे रास्ते हैं। दो साल में 250 करोड़ रुपए तो कमाए ही होंगे। मुंबई में कम से कम 100 बड़े बिल्डर तो हैं ही, एक ने 2-3 करोड़ रुपए दिया तो 200-300 करोड़ रुपए तो आराम से इकट्ठा हो जाते हैं। बिल्डरों के लिए 2 करोड़ रुपए बड़ी रकम नहीं है। एक बात तय है कि अनिल देशमुख अपने काम में मददगार होता। मैं साहेब का आदमी हूं, परंतु साहेब की फोटो नहीं रखता हूं, संबंध नहीं दिखाता हूं, कभी स्टेटस नहीं रखता।
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