महाराष्ट्र विधान परिषद में नेता विपक्ष को लेकर महाविकास आघाड़ी में फूट स्पष्ट हो गई है। उद्धव ठाकरे पर सहयोगी दलों ने आरोप लगाया है कि, उन्होंने सभी को विश्वास में नहीं लिया और विधान परिषद सदस्य अबंदास दानवे को विधान परिषद का नेता विपक्ष पद दिलवा दिया। इसके बाद उपजी परिस्थिति यही है कि, गठबंधन का बंधन टूट गया और तीनों दलों में अविश्वास की गांठ पैदा हो गई।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष जयंत पाटील ने कहा कि, उद्धव ठाकरे को सहयोगी दलों को विश्वास में लेना चाहिये था। जबकि कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष नाना पटोले ने सीधे सुना दिया कि, महाविकास आघाड़ी कोई सदा के लिए नहीं बनी थी। सहयोगी दलों के इन बयानों के बाद उद्धव ठाकरे के लिए महाविकास आघाड़ी में कुछ बचता ही नहीं है।
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सेना चली घड़ी की चाल
भारतीय जनता पार्टी और एकनाथ शिंदे की शिवसेना युति के सत्ता में आने के बाद घटनाक्रम तेजी से बदले। महाविकास आघाड़ी के तीन मुख्य दल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस ने विधान परिषद अध्यक्ष के लिए शिवसेना को उम्मीदवारी दी थी। इसके लिए उद्धव ठाकरे गुट ने राजन सालवी को मैदान में उतारा, जिन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। युति सरकार ने भी इसी के साथ विश्वास मत प्राप्त कर लिया। इससे स्पष्ट हो गया कि, संख्याबल में उद्धव ठाकरे के पास मात्र 15 विधायक ही बचे हैं, जबकि सहयोगी राष्ट्रवादी कांग्रेस के पास 54 विधायक हैं, जिसके कारण विधान सभा अध्यक्ष पद के लिए शिवसेना को उम्मीदवारी देनेवाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने तैजी से पैंतरा बदला और विधान सभा में नेता विपक्ष के रूप अजीत पवार को आगे कर दिया। अजीत पवार नेता विपक्ष बन गए। इसकी खुंदक का परिणाम कहें या विधान परिषद में अपनी शक्ति प्रदर्शन का प्रयत्न उद्धव ठाकरे भी तेजी से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की घड़ी की तरह दौड़ पड़े और संभाजी नगर से विधान परिषद सदस्य अंबादास दानवे को विधान परिषद में नेता विपक्ष बना दिया। इस कड़ी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई शिवसेना विधायक व विधान परिषद उपसभापति नीलम गोर्हे ने। उन्होंने शिवसेना के प्रस्ताव को तत्काल मंजूर कर लिया और अंबादास दानवे नेता प्रतिपक्ष बन गए।