स्वबल को ‘ना-ना’: कांग्रेस हाइकमांड ने ऐसा क्या समझाया की पटोले को भी पट गई?

महाराष्ट्र में कांग्रेस को मजबूत करने के प्रयत्न में नए अध्यक्ष ने कमान संभालते ही आक्रामक रूप ले लिया था। उन्होंने इसमें जनता से सीधे जुड़ने का कार्य शुरू किया, इसी में एक नारा था स्वबल का।

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प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले ने पदभार संभालने के बाद ही पार्टी में दम भरने का कार्य शुरू कर दिया था। यह करते-करते बात पहुंच गई स्वबल पर चुनाव लड़ने की। नाना ने बात की थी तो कौन हलके में लेता, महाविकास आघाड़ी के घटक दलों को यह बात चुभने लगी और फिर पटोले को पटाने के लिए हाइकमांड के दरबार में फोन शुरू हो गए और स्वबल का नारा नाना से ना-ना तक आ गया।

दरअसल, इसके पीछे जो गणित कांग्रेस हाइकमांड ने दिया है उसका कोई तोड़ राज्य के नेताओं के पास नहीं है। कांग्रेस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथियों को जितना हो बिखरा रखना चाहती है। इसके लिए महाराष्ट्र में हाथ की सत्ता को खोकर स्वबल की झूठी हवा देना दिल्ली दरबार को बुद्धिमानी नहीं लगी। सूत्रों के अनुसार स्बल के मुद्दे पर जैसे ही मुख्यमंत्री ने कांग्रेस हाइकमांड से बात की नाना पटोले को दिल्ली बुला लिया गया।

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बंटवारे से कांग्रेस का लाभ
16 जून को भारतीय जनता पार्टी का फटकार मोर्चा निकालनेवाले कार्यकर्ताओं पर शिवसैनिकों ने हमला कर दिया था। दो सम विचार और लंबे समय तक साथ रहे दलों के इस संघर्ष पर सबसे अधिक खुश महाविकास आघाड़ी के दो सत्ताधारी दल ही थे। इसके पीछे कारण है 2024 का चुनाव।

कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव को लक्ष्यित करके चल रही है। इसके लिए वर्तमान साथी शिवसेना के साथ कांग्रेस       का बने रहना आवश्यक है। सूत्रों के अनुसार यदि भाजपा अकेले चुनाव लड़ेगी तो हिंदू वोटों में बंटवारा निश्चित है और      इसका लाभ गैर भाजपा दलों को ही होगा

बात है कि वर्तमान में भले ही छोटे रूप में ही पर सत्ता सुख से पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल बना हुआ है। चौक-      चौराहों से कांग्रेस कार्यालयों तक बोर्ड, बैनर और भीड़ दिख रही है।

मुख्यमंत्री ने घुमाई चाबी
पिछले कई महीनों से चल रहे स्वबल के नारे से आघाड़ी को आंच पड़ने लगी थी। नाना पटोले ने राज्य में वातावरण बना दिया तो मुंबई में भाई जगताप ने उसी राह को अपना लिया। सूत्रों के अनुसार इसके बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस हाइकमांड से इस संदर्भ में बात की। और नाना पटोले को दिल्ली जाना पड़ा।

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दिल्ली में क्या बात हुई
दिल्ली के अंदरखाने से जो जानकारी मिली है उसके अनुसार सरकार के मित्र पक्ष के अलावा महाराष्ट्र कांग्रेस का एक गुट भी नाना पटोले के नारे से असहमत था। वह अपनी नाराजगी बार-बार दिल्ली दरबार में पहुंचा रहा था, जिसे मुख्यमंत्री के फोन ने पुख्ता कर दिया। जानकारी के अनुसार इसके बाद नाना पटोले को दिल्ली यात्रा में सरकार में रहने का केंद्रीय लाभ समझा दिया गया और अब नारा गुम और स्वबल सुम है।

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