हिंदुत्व के मुद्दे पर वर्षों तक साथ रही शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी एक दूसरे के कट्टर राजनैतिक दुश्मन बन गई हैं। इसका ताजा उदाहरण मुंबई के दादर स्थित शवसेना भवन के बाहर 17 जून को देखने को मिला। सबसे हैरत की बात तो यह है कि जिस राम मंदिर के मुद्दे पर दोनों पार्टियां हमेशा एक रहती थीं, उसी मुद्दे पर दोनों में मारपीट हो गई। इनके इस तरह के झगड़े से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस खुश है। अब ये सोच रहे हैं, कि इन दोनों को लड़ाने के लिए और कुछ करने की जरुरत नहीं है।
2019 में विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश के मतदाताओं ने शिवसेना-भाजपा गठबंधन को स्पष्ट जनादेश दिया, लेकिन मुख्यमंत्री पद के लिए शिवसेना ने कांग्रेस और राकांपा से दोस्ती कर ली तथा अपनी पुरानी मित्र भाजपा को विपक्षी पार्टी के रुप में खड़ा कर दिया। अब, राज्य में एक समय के दोनों दोस्त कट्टर दुश्मन बन गए हैं, और दोनों पार्टियों के कार्यकर्ता एक-दूसरे के सिर फोड़ने पर उतारु हो गए हैं।
कांग्रेस-राकांपा खुश
कांग्रेस और राकांपा के कुछ नेता यह देखकर बहुत खुश हैं कि कांग्रेस-राकांपा गठबंधन की कोशिश के बावजूद जो शिवसेना उनके साथ नहीं आई, वह अपने आप इनके साथ आ गई और वास्तव में महाविकास आघाड़ी सरकार का सपना सच होता दिख रहा है। इस स्थिति में दोनों पार्टी के नेता बिना कोई टिप्पणी किए भाजपा-शिवसेना के बीच झगड़े का लुत्फ उठा रहे हैं।
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कांग्रेस-राकांपा की राह पर शिवसेना
राज्य में कांग्रेस और राकांपा के साथ शिवसेना के गठबंधन को लेकर पुराने शिवसैनिक खुश नहीं हैं। भाजपा के कुछ पुराने कार्यकर्ता भी दोनों पार्टियों को अलग होने से नाराज हैं। शिवसेना और भाजपा के कुछ पुराने कार्यकर्ताओं का कहना है कि इन दोनों पार्टियों के झगड़े से कांग्रेस तथा राकांपा को भविष्य में सबसे ज्यादा फायदा होगा। कुछ कार्यकर्ताओं का यह भी मानना है कि हमेशा हिंदुत्व का विरोध करने वाली कांग्रेस और राकांपा अब दोनों पार्टियों के बीच के झगड़े का लुत्फ उठा रही हैं।
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क्या बालासाहेब-महाजन को भूल गए कार्यकर्ता?
शिवसेना प्रमुख बालासाहब ठाकरे, वाजपेयी, आडवाणी, प्रमोद महाजन, गोपीनाथ मुंडे और अन्य सभी दिग्गजों ने गठबंधन पर मुहर लगाई थी। उनके रहते इस गठबंधन को कभी ग्रहण नहीं लगा। इस हालत में सवाल यह है कि क्या दोनों पार्टियों के कार्यकर्ता अपने विचार भूल गए हैं?