गुजरात के कद्दावर पटेल नेता केशुभाई नहीं रहे। वे दो बार गुजरात के मुख्यमंत्री रहे। लेकिन गुजरात भूकंप के समय बढ़े असंतोष को देखते हुए उन्हें हटना पड़ा। केशुभाई पटेल के राजनीतिक जीवन में इसके बाद उतार ही देखने को मिला। इस बीच एक समय ऐसा भी आया, जब केशुभाई ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को अपदस्थ करने के लिए कमर कस ली थी। उस समय केशुभाई ने कहा था, “मेरी उम्र नहीं मेरा स्वास्थ्य देखिये। नरेंद्र मोदी के पास धन है और मेरे पास जन हैं।”
वर्ष 2014 में गुजरात में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पहले एक विदाई कार्यक्रम गांधीनगर के महात्मा मंदिर में आयोजित किया गया था। गुजरात बीजेपी के सभी कद्दावर नेता मंच पर मौजूद थे। सभी नरेंद्र मोदी के आने का इंतजार कर रहे थे। इस इंतजार के बीच नरेंद्र मोदी का आगमन हुआ और वे मंच की तरफ बढ़ने लगे। मंच पर पहुंचने पर उनकी कुर्सी मध्य में थी। उनके बगल में गुजरात की संभावित मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल (आधिकारिक घोषणा होना बाकी थी) दूसरी तरफ नितिन पटेल आदि नेता बैठे थे। इस बीच नरेंद्र मोदी की निगाह मंच के सामने पड़ी, जिसमें पहली कतार में केशुभाई पटेल बैठे थे। नरेंद्र मोदी तपाक से उठे और मंच से नीचे आने लगे। बीजेपी के सभी नेता आश्चर्य चकित थे कि मोदी जी कहां जा रहे हैं। मोदी नीचे पहली कतार में बैठे केशुभाई के पास आए, उन्हें नमन किया और फिर उन्हें मंच पर ले जाने लगे। केशुभाई का स्वास्थ्य ठीक नहीं था। वे ठीक से चलने में भी असमर्थ थे, इसलिए उन्हें सहायता से मंच पर ले जाया गया। केशुभाई को उस कुर्सी पर नरेंद्र मोदी ने बैठाया, जिस पर वे खुद बैठे थे। इस पूरी घटना का साक्ष्य मैं खुद रहा हूं। मैं इस कार्यक्रम को कवर करने गया था।
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वैसे नरेंद्र मोदी की विनम्रता के कायल सभी थे, महात्मा मंदिर में केशुभाई पटेल के चेहरे को देखकर लगा जैसे इस कुर्सी ने उन्हें 14 वर्ष के वनवास से वापस ला दिया है। दरअसल, कुर्सी के छूटने का क्षोभ केशुभाई को हमेशा रहा। 2001 में गुजरात भूकंप से हुए भारी नुकसान और प्रभावितों को मदद पहुंचाने में सरकार की नाकामी पर लोगों का भारी गुस्सा था। बीजेपी और केशुभाई के खिलाफ राज्य में वातावरण खड़ा हो रहा था। बीजेपी ने इस भांपकर उस समय बीजेपी के महामंत्री रहे नरेंद्र मोदी के हाथ राज्य की कमान सौंप दी। इससे लोगों की नाराजगी को कुछ सीमा तक नियंत्रित किया गया लेकिन केशुभाई पटेल इससे बहुत नाराज हो गए।
खजूरिया ने निकाला हजूरिया का दम
केशुभाई को 2001 के पहले भी एक बार मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। जब शंकर सिंह वाघेला ने विद्रोह करते हुए कांग्रेस का हाथ थाम लिया था। इसके बाद केशुभाई की जगह सुरेश मेहता मुख्यमंत्री बने।
दरअसल, घटना ये थी कि, केशुभाई पटेल और शंकर सिंह वाघेला के बीच बड़ी अनबन चल रही थी। केशुभाई अमेरिका गए थे गुजरात में व्यापार प्रोत्साहन के लिए बड़े व्यापारियों से मिलने। इस बीच राज्य में मौजूद शंकर सिंह वाघेला (बापू) ने खेल कर दिया। उन्होंने 122 बीजेपी विधायकों को मुख्यमंत्री केशुभाई के खिलाफ खड़ा करना शुरू कर दिया। आखिरकार 27 सितंबर 1995 को 47 विधायकों के साथ शंकर सिंह वाघेला कांग्रेस में शामिल हो गए। इन विधायकों को बीजेपी से बचाने के लिए बापू उन्हें कांग्रेस शासित राज्य मध्य प्रदेश ले गए। जहां विधायकों को खजुराहो में ठहराया गया था। इसके बाद केशुभाई की कुर्सी हिल गई। अहमदाबाद वापस लौटने पर बापू के समर्थक विधायकों को खजूरिया कहा जाने लगा। जबकि केशुभाई पटेल के समर्थकों को हजूरिया कहकर बुलाया जाने लगा।
हम सभी के प्रिय, श्रद्धेय केशुभाई पटेल जी के निधन से मैं दुखी हूं, स्तब्ध हूं। https://t.co/kWCDdWmyOR
— Narendra Modi (@narendramodi) October 29, 2020
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गुजरात परिवर्तन पार्टी का गठन
नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री बनने के बाद केशुभाई पटेल हाशिये पर ही रहे। उन्होंने लेहुवा पटेल समाज में अपनी पकड़ के बल पर भी कई बार उठने की कोशिश की लेकिन मोदी के दांव के आगे उनका हाथ-पैर मारना फेल हो गया। दूसरी तरफ केशुभाई पटेल के विश्वसनीय सुनील जोशी सीडी कांड में फंस गए थे। उनका राजनीतिक सफर ही खत्म हो गया था। 2007 के चुनावों में केशुभाई बीजेपी में रहकर भी नरेंद्र मोदी का विरोध कर रहे थे। लेकिन 2012 में केशुभाई ने अचानक करवट ली और अपनी पार्टी का गठन किया जिसका नाम रखा “गुजरात परिवर्तन पार्टी।” इस चुनाव में मुकाबला त्रिकोणीय हो गया। बीजेपी-कांग्रेस और जीपीपी (गुजरात परिवर्तन पार्टी) का मुकाबला हुआ लेकिन जीपीपी को कोई खास सफलता नहीं मिली। अंत में केशुभाई ने 2014 में अपनी पार्टी के बीजेपी में विलय की घोषणा कर दी।
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