कर्नाटक में मचे हिजाब विवाद पर स्कूल-कॉलेजों में इसे पहनकर जाने की अनुमति की मांग को लेकर दायर की गई याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने तत्काल सुनवाई करने से मना कर दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर याचिकाकर्ताओं को झटका देते हुए सलाह दी कि इस मामले में वे सनसनी न फैलाएं।
हिजाब के समर्थन में याचिका दायर करने वाली छात्राओं की ओर से वकील देवदत्त कामत ने कहा कि परीक्षा शुरू होने वाली है। इसलिए छात्राओं की पढ़ाई को नुकसान से बचाने के लिए मामले पर तत्काल सुनवाई की जाए। इस पर न्यायालय ने कहा कि हिजाब विवाद से परीक्षा का कोई लेनादेना नहीं है। आप इस मामले में सनसनी फैलाने से बचें।
सनसनी न फैलाने की सलाह
वकील कामत की दलील पर सीजेआई एनवी रमन्ना ने कहा कि परीक्षाओं से इस मामले का कोई लेनादेना नहीं है। इस पर ज्यादा बातें कर सनसनी न फैलाएं। इससे पूर्व भी न्यायालय ने इस मामले पर तत्काल सुनवाई करते हुए होली बाद विचार करने की बात कही थी। 24 मार्च को मुख्य न्यायाधीश के पास इस मामले को तत्काल सुनवाई के लिए रखा गया था। इस दौरान कामत ने दलील पेश करते हुए कहा कि 28 मार्च से परीक्षा शुरू होने वाली है। इस स्थिति में इन छात्राओ को हिजाब पहनकर प्रवेश नहीं दिया गया तो उनका एक वर्ष बेकार चला जाएगा।
हिंदू सेना के नेता की मांग
कर्नाटक की दो छात्राओं ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है। इस मामले में हिंदू सेना के नेता सुरजीत यादव ने भी कैविएट दाखिल कर सर्वोच्च न्यायालय से उच्च न्यायालय के फैसले की रोक पर एकतरफा आदेश न देने की मांग की है।
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा है प्रतिबंध
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने स्कूलों और कॉलेजों में हिजाब प्रतिबंध बरकरार रखने का फैसला सुनाया है। न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि इस्लाम में हिजाब अनिवार्य नहीं है। उच्च न्यायालय के इसी फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है।
बड़ा सवाल
सर्वोच्च न्यायालय के इस कदम से हिजाब पहनकर ही स्कूल-कॉलेज जाने और परीक्षा में शामिल होने की जिद पर अड़ी छात्राओं के सामने बड़ा प्रश्न खड़ा हो गया है। सवाल यह है कि क्या वे हिजाब पहनकर परीक्षा देंगी या फिर परीक्षा का बहिष्कार करेंगी?
कर्नाटक सरकार का बड़ा फैसला
बता दें कि कर्नाटक में हिजाब पहनने की जिद को लेकर जिन छात्राओं ने परीक्षा छोड़ दी थी, उनके सामने अब परेशानियों का पहाड़ खड़ा होने जा रहा है। कर्नाटक सरकार ने उन छात्राओं को दंडित करने के लिए एक बड़ा निर्णय लिया है। सरकार ने अपने निर्णय में कहा है कि जिन छात्राओं ने परीक्षा छोड़ी है, उनके लिए वह फिर से परीक्षा नहीं करवाएगी। 12 वीं की इन छात्राओं ने प्रैक्टिकल परीक्षा का बहिष्कार किया था।
शिक्षा मंत्री का तर्क
प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मंत्री बीसी नागेश ने इस बारे में कहा कि इन छात्राओं ने उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद परीक्षा का बहिष्कार किया। अगर हम इनके लिए अलग से परीक्षा का प्रबंध करते हैं तो दूसरे छात्र किसी और कारण बताकर दूसरा मौका मांग सकते हैं। ये संभव नहीं है।
छात्राओं को होगा बड़ा नुकसान
बता दें कि प्री यूनिवर्सिटी की परीक्षाओं में प्रैक्टिकल में 30 अंक होते हैं, जबकि थ्योरी 70 अंक की होती है। पूरी परीक्षा 100 अंक की होती है। इस स्थिति में अगर हिजाब पहनने वाली छात्राओं को प्रैक्टिकल का दोबारा मौका नहीं दिया जाता है तो उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ेगा।