अनुच्छेद समाप्त पर नियम वही! भाजपा राज में जम्मू के लोगों को कश्मीर में नौकरी नहीं?

जम्मू कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद भी जम्मू के अधिकारों की लड़ाई समाप्त नहीं हुई है। सुविधाओं से लेकर नौकरी तक में जम्मू के साथ भेदभाव हो रहा है।

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जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 ए रद्द होना बड़ी सफलता थी। भारतीय जनता पार्टी को इसके लिए देश-विदेश से बड़ी प्रशंसा मिली, लेकिन अब इसकी सच्चाई एक-एक करके सामने आ रही है। जिस भाजपा सरकार ने संसद की मेज पर सीना ठोंक कर कहा था कि भारत के किसी भी क्षेत्र का नागरिक जम्मू कश्मीर में बस सकता है, नौकरी कर सकता है, उस सरकार के उपराज्यपाल की देखरेख में कश्मीर की सरकारी नौकरियां मात्र कश्मीरियों के लिए आरक्षित हैं, जबकि जम्मू की नौकरियों में कश्मीरी भी आवेदन कर सकते हैं। राज्य में भूमि खरीदने के लिए डोमिसाइल चाहिए और अपने हिस्से की सांसों के लिए जम्मू लड़ रहा है।

यह आरोप नहीं है, बल्कि सच्चाई है जिसका साक्ष्य है 20 मई, 2021 को जारी विज्ञापन। इसमें स्वस्थ्य विभाग के अलग-अलग पदों के लिए आवेदन मंगाए गए हैं। यह नियुक्तियां कोविड 19 की आपात परिस्थिति में अस्थाई रूप से की जानी हैं। इसमें नियुक्त कर्मी डिफेन्स रिसर्च डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन द्वारा अस्थाई रूप से गठित 500 बिस्तरवाले कोविड 19 अस्पताल में सेवाएं देंगे। इसके अलावा दूसरा विज्ञापन श्रीनगर के गवर्नमेन्ट मेडिकल कॉलेज के लिए दिया गया है।

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जम्मू का जूझना यहीं समाप्त नहीं होता, वह अपने लोगों की सांसों को चलता रखने के लिए भी लड़ रहा है। जर्मनी से आए सात ऑक्सीजन जनरेटरों को श्रीनगर भेज दिया गया है, जबकि सांसें उखड़ने का सिलसिला जम्मू में अधिक है, भले ही कश्मीर में कोविड 19 के संक्रमित अधिक पाए जा रहे हैं।

नौकरियां हैं पर कश्मीर के लिए
सरकार द्वारा जारी किये गए दो विज्ञापनों में फार्मासिस्ट, लैब टेक्नीशियन, एक्स रे टेक्नीशियन, नर्स, एनेस्थीसिया टेक्नीशियन के पदों पर नियुक्तियों के लिए आवेदन मंगाए गए हैं। लेकिन डीआरडीओ के कोविड सेंटर में नियुक्ति के टर्म्स एण्ड कंडीशन में लिखा है मात्र जम्मू कश्मीर के लोग ही आवेदन करें, जबकि गवर्नमेन्ट कॉलेज श्रीनगर के लिए मात्र कश्मीर डिवीजन के लोग ही आवेदन कर सकते हैं।

लोकतंत्र को तोड़ रहे

इस प्रकरण पर इक्कजुट्ट जम्मू के अध्यक्ष अंकुर शर्मा कहते हैं कि,

यह लोकतंत्र को जिहादी मॉडेल, ऑपरेशन टोपैक और मुस्लिम ब्रदरहुड के माध्यम से धराशायी करना है।

जम्मू-कश्मीर स्वास्थ्य और मेडिकल शिक्षा विभाग
कश्मीर के लिए मात्र कश्मीरी ही आवेदन करें
जम्मू के पदों पर सभी आवेदन कर सकते हैं।

वास्तविकता में इसे कहते हैं इस्लामिक स्टेट!

अधिकारों से वंचित जम्मू और हिंदू
जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्ति की घोषणा करते समय संसद के पटल को ठोंक कर कहा गया था कि अब इस राज्य का दरवाजा अन्य सभी भारतीयों के लिए खुल गया है। लेकिन इसकी सच्चाई जानने के लिए जब इक्कजुट्ट जम्मू के अध्यक्ष अंकुर शर्मा से बात की गई तो उन्होंने दर्द से सिसकते हिंदुओं और अधिकारों से वंचित किये गए जम्मू की सच्चाइयों का पिटारा ही खेल दिया।

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हिंदुओं के नरसंहार को नहीं मिली मान्यता
1990 में कश्मीर घाटी में हिंदुओं का नरसंहार हुआ। इस पर हिंदुओं की हमेशा से मांग रही है कि इसे भारत सरकार नरसंहार घोषित कर दे। लेकिन भारत सरकार पर इस्लामीकरण के नीति निर्धारकों ने ऐसा दबाव बनाया कि वह हो नहीं पाया।

जम्मू को पॉवर विहीन करने का षड्यंत्र
अनुच्छेद 370 और 35 ए की समाप्ति के बाद एक मुद्दा उठा कि जम्मू और कश्मीर में पॉवर शेयरिंग कैसे होगी। इस पर सरकार ने निर्णय किया कि इसके लिए जम्मू और कश्मीर का परिसीमन कराया जाए। इसके लिए 2011 की जनगणना को बेस मानने का सुझाव एक वर्चस्ववादी विशेष गुट ने शुरू कर दी। जबकि, यह वह जनगणना है जिसमें इस्लामिक स्टेट के एंजेंडे को चलाया गया था। भाजपा भी इस जनगणना को फर्जी मानती है।

जमीन की लूट
जम्मू कश्मीर रौशनी एक्ट (जम्मू और कश्मीर राज्य भूमि एक्ट) के अंतर्गत जम्मू कश्मीर की दस लाख कनाल भूमि पर कब्जा किया गया है। भूमि पर अवैध कब्जा करनेवालों में 90 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम थे।

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जम्मू में रोहिंग्या
जम्मू के हिंदू बहुल क्षेत्रों, वन क्षेत्र व सरकारी भूखंडों पर रोहिंग्या को बसाया गया। उन्हें सहायता दी गई। शरणार्थी और उत्पीड़न के नाम पर उन्हें सुविधाएं दी गईं। उनकी बच्चियों के विवाह यहां के लोगों से कराए गए जिससे वे यहां के समाज में रच बस जाएं।

बहुसंख्यकों के हाथ अल्पसंख्यकों का लाभ
2016 में सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई कि जम्मू कश्मीर में मुसलमानों को अल्पसंख्यक न माना जाए। इसे न्यायालय ने मान्य कर लिया। इसके अंतर्गत न्यायालय ने आदेश भी दिया लेकिन जम्मू कश्मीर सरकार ने इसे लागू नहीं किया। परिस्थिति यह है कि वर्तमान प्रशासन भी सर्वोच्च न्यायालय के उस निर्णय को न मानते हुए अल्पसंख्यकों को दी जानेवाली लगभग 60 से 70 सरकारी योजनाओं का लाभ मुसलमानों को देना जारी रखे हुए है।

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