स्वातंत्र्यवीर सावरकर की कीर्ति को पढ़ेंगे छात्र, स्मारक के प्रयत्नों को मिला यश

स्वातंत्र्यवीर सावरकर का जीवन राष्ट्र कर्म और राष्ट्र धर्म के प्रति समर्पित था। वे स्वतंत्रता सेनानियों के अग्रणी थे और समाजोद्धारक के रूप में हिद्ओं में व्याप्त सप्त बंदियों की समाप्ति जैसे कई महत्वपूर्ण कार्य किये। वे पहले स्वतंत्रता सेनानी है जिन्होंने राष्ट्र को सर्वोपरि मानते हुए अपनी बैरिस्टर की उपाधि को अस्वीकार कर दिया, क्योंकि उसके लिए अंग्रेजों को प्रतिज्ञापत्र देना होता था।

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विश्वविद्यालयों में स्वातंत्र्यवीर सावरकर अध्ययन केंद्र शुरू करने की मांग लंबे काल से हो रही थी। इस संबंध में स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री को पत्र लिखकर मांग की थी। इन प्रयत्नों को अब यश मिला है। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद की ओर से जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर उमेश कदम की नियुक्ति की गई है, जो देश में स्वातंत्र्यवीर सावरकर के जीवन कार्यों पर सेमिनार, व्याख्यान और विशेष कार्यक्रमों का आयोजन करेंगे।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में ‘हे मृत्युंजय’ नाटक के मंचन ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर के राष्ट्रोद्धारक कार्यों से छात्रों के अवगत होने की राह खोल दी। इसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय में भी यह हुआ, जिससे विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक परिवेश में स्वातंत्र्यवीर सावरकर का जीवन छात्रों के समक्ष प्रस्तुत हुआ। इसके पीछे स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक की पहल और प्रयत्न है। स्मारक ने इन कार्यक्रमों के लिए तत्कालीन शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को पत्र लिखा और विश्वविद्यालयों में स्वातंत्र्यवीर सावरकर अध्ययन केंद्र शुरू करने की मांग की।

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जेएनयू के प्रोफेसर बने संयोजक
भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर के जीवन पर आधारित सेमिनार, व्याख्यान, विशेष कार्यक्रम जो 11 सितंबर, 2019 को आयोजित किया गया था, उसे काउंसिल के निर्णयानुसार श्रृंखलाबद्ध रूप से विश्वविद्यालयों में आयोजित किया जाए यह निर्णय किया गया है। इसके लिए प्रोफेसर उमेश कदम को संयोजक नियुक्त किया गया है। वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के इतिहास अध्ययन केंद्र में प्रोफेसर हैं। वर्तमान की योजनानुसार रत्नागिरी, अंदमान और राजस्थान में कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।

नई पीढ़ी को मिले लाभ
स्वातंत्र्यवीर सावरकर के जीवन से नई पीढ़ी परिचित हो, उनके जीवन के विभिन्न आयामों पर रिसर्च हो यही हमारा मुख्य उद्देश्य है। इसके लिए आवश्यक है कि देश के अलग-अलग शैक्षणिक संस्थानों में चेयर्स गठित हों, जैसा कि, पुणे के सावित्री बाई फुले विश्वविद्यालय में हुआ है। इस विषय में पिछले तीन-चार वर्षों से स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक मुंबई के साथ मिलकर हम सरकार से मांग कर रहे थे। हम चाहते हैं कि जैसे डॉ.आंबेडकर, महात्मा फुले आदि के चेयर्स हैं वैसे ही स्वातंत्र्यवीर सावरकर चेयर का निर्माण हो। अब भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद सेमिनार की श्रृंखला शुरू करने का निश्चय किया है।
इसके अतंर्गत पहला सेमिनार रत्नागिरी में करने की योजना है। जिसमें हमारा प्रयत्न है कि स्वातंत्र्यवीर सावरकर के हिंदुत्व को गलत रूप से उद्धृत किया गया था। हम छात्रों को इसका सही रूप बताएंगे, हमारा प्रयत्न है कि वीर सावरकर के विचार सभी तक पहुंचे। उनके विचारों के हिंदू वे ऑफ लाइफ, भारत को कैसे सक्षम करें और नए दृष्टिकोण के बारे में हम बताएंगे।

प्रोफेसर उमेश कदम, संयोजक
भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद -स्वातंत्र्यवीर सावरकर सेमिनार श्रृंखला

स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक का था प्रयत्न
स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक ने 23 अगस्त, 2019 को एक पत्र केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को लिखा। जिसमें यह लिखा गया कि देश के विश्वविद्यालयों में स्वातंत्र्यवीर सावरकर अध्ययन केंद्र शुरू किया जाए। इसके पहले भी स्मारक द्वारा पत्र के माध्यम से ‘हे मृत्युंजय’ नाटक के मंचन की मांग की गई थी। जिसे मान्य कर लिया गया और वामपंथी विचारधारा के केंद्र जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्वातंत्र्यवीर सावरकर का जीवन चरित्र अनुगुंजित हुआ।

जेएनयू में ‘हे मृत्युंजय’ 
स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक निर्मित ‘हे मृत्युंजय’ का मंचन वाम पंथियों के गढ़ में सफलता पूर्ण करना बड़ी चुनौती थी। जिसे स्मारक के तत्वावधान में सफल किया गया। 13 अगस्त, 2019 को दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) और 12 अगस्त 2019 को दिल्ली विश्वविद्यालय में इसका मंचन एक नया प्रयत्न था। दिल्ली विश्वविद्यालय में सफल मंचन से प्रेरित छात्रों ने शक्ति सिंह नामक छात्र के नेतृत्व में विश्वविद्यालय परिसर में स्वातंत्र्यवीर सावरकर, सुभाषचंद्र बोस और भगतसिंह की त्रिमूर्ति स्थापित की।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में ‘हे मृत्युंजय’ नाटक के दूसरी बार किये गए मंचन ने स्वातंत्र्यवीर के विचारों को वहां अधिक दृढ़ कर दिया। स्मारक की पहल पर संपन्न इस कार्यक्रम की दूसरी उपलब्धि रही कि जेएनयू के एक मार्ग का नामकरण स्वातंत्र्यवीर सावरकर पर हो गया। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की अगुवाई में संपन्न यह कार्यक्रम 26 फरवरी, 2020 को स्वातंत्र्यवीर के आत्मार्पण दिन पर संपन्न हुआ। अब प्रति वर्ष स्वातंत्र्यवीर सावरकर की जयंती और आत्मार्पण क्रमश 28 मई और 26 फरवरी को कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

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