गुपकार समझौते का सच!

जम्मू-कश्मीर का गठन ही एक ऐसे विशेषाधिकार कानून के साथ हुआ कि देश के लिए वह नासूर बन गया। लेकिन, वहां के नेताओं को अपना राज चलाने के लिए सुअवसर दे गया। इसका परिणाम ये हुआ कि राजनीति का वंशवाद और सत्ता सुख के लिए ऊल-जुलूल बयानबाजी नेताओं की नसों पर रच-बस गई।

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अनुच्छेद 370 और 35-ए के खत्म होने के बाद जम्मू-कश्मीर की भौगोलिक स्थिति बदल गई है। राज्य बदला तो वहां के राजनीतिक नेतृत्व की कुर्सी भी खिसकने लगी। हालांकि, इस बदलाव की जानकारी जम्मू-कश्मीर के नेताओं को पहले से ही थी। जिसे देखते हुए परस्पर एक दूसरे का विरोधी होने के बाद भी फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती समेत अन्य स्थानीय दलों के नेताओं ने एक संयुक्त बैठक की। यह बैठक फारूक अब्दुल्ला के गुपकार स्थित निवास स्थान पर हुई। इसमें सभी पार्टियां एक आम समझौते पर राजी हुईं जिसे गुपकार समझौता कहा जाने लगा।

क्या है समझौता?

  • 4 अगस्त 2019 को फारूक अब्दुल्ला के गुपकार स्थित आवास पर एक सर्वदलीय बैठक हुई थी। इस बैठक में जम्मू-कश्मीर के 6 बड़े राजनीतिक दल शामिल थे। इसमें नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, कांग्रेस, पीपुल्स कांफ्रेंस, माकपा और ए.एन.के सम्मिलित है।
  • बैठक के बाद फारूक अब्दुल्ला ने संवाददाताओं से कहा कि, ‘नेताओं ने गठबंधन बनाने का निर्णय किया, जिसका नाम ‘पीपल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन’ है।
  • नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष ने कहा, ‘जम्मू-कश्मीर और लद्दाख से जो छीन लिया गया, उसकी बहाली के लिए हम संघर्ष करेंगे। हमारी संवैधानिक लड़ाई है। हम (जम्मू-कश्मीर के संबंध में) संविधान की बहाली के लिए प्रयास करेंगे, जैसा कि 5 अगस्त 2019 से पहले था।’
  • अब्दुल्ला ने कहा कि गठबंधन जम्मू-कश्मीर के मुद्दे के समाधान के लिए सभी संबंधित पक्षों से वार्ता भी करेगा।
  • वे जम्मू-कश्मीर की पहचान, स्वायत्तता और उसके विशेष दर्जे को बनाए रखने के लिए सामूहिक प्रयास करेंगे।
  • अनुच्छेद 370 समाप्त करने का फैसला असंवैधानिक है इसे फिर से लागू करने के लिए प्रयास होगा।

राजनीतिक डांवाडोल

जम्मू-कश्मीर का गठन ही एक ऐसे विशेषाधिकार कानून के साथ हुआ कि देश के लिए वह नासूर बन गया। लेकिन, वहां के नेताओं को अपना राज चलाने के लिए सुअवसर दे गया। इसका परिणाम ये हुआ कि राजनीति का वंशवाद और सत्ता सुख के लिए ऊल-जुलूल बयानबाजी नेताओं की नसों पर रच-बस गई।

दरअसल, आज का कश्मीर वहां पुश्तैनी रूप से सत्ता संभाल रहे दलों को स्वीकार्य नहीं है। उनका सारा यत्न आज भी उसी राजनीति को जारी रखने की है जिसकी नींव 1931 में शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने रखी थी।

कैसे बदली राजनीति?

  • जानकारी के अनुसार 1931 में अलीगढ़ से शेख अब्दुल्ला के घाटी लौटते ही कश्मीर का माहौल बदलना प्रारंभ हो गया। पूर्व सदर-ए-रियासत और कांग्रेस के नेता कर्ण सिंह ने अपनी पुस्तक ‘आत्मकथा कर्ण सिंह’ में भी इसका उल्लेख किया है।
  • 22 अक्तूबर, 1947 में पाकिस्तानी कबाइलियों ने मजहबी नारों के साथ जम्मू-कश्मीर रियासत पर हमला किया था।
  • ये हमला अप्रत्याशित था इसलिए निश्चिंत होकर सो रहे रियासत के सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट कर्नल नारायण सिंह को उनके मुस्लिम सैनिकों ने मौत के घाट उतार दिया और पाकिस्तानी आक्रांताओं से जा मिले।
  • जानकारों के अनुसार जिस ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ पर जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरिसिंह ने हस्ताक्षर किया था, उसके प्रारूप का एक-एक शब्द वही था, जिस पर अन्य 560 से अधिक रियासतों ने भारत विलय के समय हस्ताक्षर किए थे।
  • वाइसराय लॉर्ड माउंटबेटन, शेख अब्दुल्ला ने पंडित जवाहरलाल नेहरू पर दबाव बनाकर 17 अक्तूबर, 1949 को अनुच्छेद 370, तो 14 मई, 1954 को अनुच्छेद 35-ए को संविधान में अस्थायी रूप से जोड़ दिया।

अनुच्छेद 370 और 35-ए का कश्मीर?

  • जम्मू-कश्मीर को विशेष स्वायत्तता
  • भारतीय संसद को सिर्फ जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार
  • नए कानून को लागू करवाने के लिए राज्य सरकार की मंजूरी अनिवार्य
  • जम्मू-कश्मीर में संविधान की धारा 356 लागू नहीं
  • राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं
  • 1976 का शहरी भूमि कानून राज्य पर लागू नहीं
  • भारत के दूसरे राज्यों के लोग जमीन नहीं खरीद सकते थे।
  • धारा 360 के तहत देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता था।
  • दलित अधिकार (आरक्षण व्यवस्था सहित) विहीन
  • महिलाओं के अधिकार ‘निजाम-ए-मुस्तफा’ (शरीयत कानून) द्वारा संचालित
  • भारतीय संविधान और दंड-संहिता निष्क्रिय
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