ये हैं, मोदी सरकार 2.0 की 5 बड़ी नाकामियां!

मोदी सरकार ने 30 मई को अपने कार्यकाल के दो वर्ष पूरे कर लिए। इन दो सालों में उसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इनमें से ज्यादातर में वह पास हो गई लेकिन कुछ में फेल भी हुई।

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30 मई को नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दो साल पूरे हो गए। इन दो सालों में मोदी सरकार को नाकामियों का भी स्वाद खूब चखने को मिला। इनमें किसान आंदोलन, दिल्ली-बंगाल चुनाव में मिली हार, कोरोना काल की दूसरी लहर में ऑक्सीजन समेत अन्य जीवन रक्षक दवाओं की कमी और देश में पर्याप्त वैक्सीन उपलब्ध न होना जैसे मुद्दे महत्वपूर्ण हैं। इन मुद्दों पर सरकार की नामकामियां उजागर होने के बाद इसकी लोकप्रियता कम होेने का दावा किया जा रहा है।

1-किसान आंदोलन
जिस तरह पिछले 6 महीनों से ज्यादा समय से दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन चल रहा है, वह चाहे किसी कारण से भी हो, सरकार की सेहत के लिए अच्छा नहीं है। मोदी सरकार इस किसान आंदोलन को समाप्त कराने में नाकाम रही है। हालांकि इसके लिए चंद किसान संगठन जिम्मेदार बताए जा रहे हैं, लेकिन इसमें सरकार की रणनीति का काम न आना, इसकी विफलता मानी जा रही है।

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2-दिल्ली-बंगाल चुनाव
पहले दिल्ली और हाल ही में पश्चिम बंगाल चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की हार मोदी सरकार की कम होती लोकप्रियता का एक बेहतरीन उदाहरण है। दिल्ली में तो भारतीय जनता पार्टी की हार शर्मिंदगी की हद तक पहुंच गई, हालांकि पश्चिम बंगाल में तीन से 77 सीटों पर जीत हासिल करना पार्टी की सफलता ही माननी चाहए। हालांकि भाजपा ने जो उम्मीद पाल रखी थी, वो पूरी नहीं होना भाजपा के लिए निराशाजनक बात है। यहां ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस पार्टी ने 213 सीटों पर जीत हासिल कर फिर से सत्तासीन हो गई है।

3- कोरोना काल में चुनाव प्रचार
पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में कोरोना काल में भी भारतीय जनता पार्टी के नेता और पीएम मोदी समेत अन्य नेताओं ने धुआंधार चुनाव प्रचार किया, इससे सरकार की छवि धूमिल हुई। हालांकि दूसरी पार्टियों ने भी इन प्रदेशों में कोरोना महामारी के खतरे को भूलकर खूब रैलियां और सभाएं कीं, लेकिन केंद्र में भाजपा की सरकार होने के कारण उसकी जिम्मेदारी बड़ी थी और उसने अपनी इस जिम्मेदारी को ठीक से नहीं निभाया। चुनाव में मनचाही सफलता न मिलने का एक कारण यह भी बताया जा रहा है।

4-वैक्सीन उपलब्ध न होना
देश में कोरोना संक्रमण भले ही कम हो रहा है, लेकिन इसका खतरा अभी भी टला नहीं है। देश में कोरोना की दूसरी लहर के बाद तीसरी लहर की भी तलवार लटकी हुई है। ऐसे में टीकाकरण ही देशवासियों को सुरक्षा प्रदान कर सकती है। लेकिन वर्तमान में देश में वैक्सीन की भारी कमी महसूस की जा रही है। कई राज्यों ने वैक्सीन की कमी के कारण 18-44 वर्ष के आयु वर्ग के लोगों के टीकाकरण पर रोक लगा रखी है। केंद्र सरकार ने इस साल के अंत तक सबके टीकाकरण का रोडमैप तैयार किया है, लेकिन वर्तमान में जो रफ्तार है, उसे देखते हुए इस लक्ष्य को पूरा करना आसान नहीं है। वैक्सीन की कमी के कारण केद्र सरकार की खूब बदनामी हो रही है।

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5-दूसरी लहर में सरकार में मनोबल की कमी 
जिस तरह मोदी सरकार ने 2020 में कोरोना काल की पहली लहर के दौरान हौसला और मजबूती का परिचय दिया था, उस तरह का मनोबल सरकार की दूसरी लहर में देखने को नहीं मिला। पीएम मोदी ने पहली लहर के दौरान जिस तरह से टीवी पर आकर लोगों का हौसला बढ़ाया था और सरकार का रुख स्पष्ट किया था, उस तरह वे दूसरी लहर में टीवी पर नहीं आए और लोगों का मनोबल बढ़ाते नहीं दिखे। इस कारण देशवासियों में पहले की तरह मनोबल नहीं दिखा, हालांकि देश और सरकार के पास कोरोना की दूसरी लहर के दौरान अनुभव के साथ ही तमाम तरह के संसाधन भी मौजूद थे। इसके बावजूद ऑक्सीजन, रेमडेसिविर और अन्य जीवन रक्षक दवाओं की कमी ने सरकार की नाकामियों को उजागर किया।

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