केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर 11 महीनों से किसान यूनियन का आंदोलन चल रहा है। परंतु, अब यह आंदोलन आपसी गुटबाजी का शिकार होता जा रहा है। लगभग 40 किसान यूनियनों के संयुक्त किसान मोर्चे में मतभेद और अनुशासनहीनता बढ़ने के समाचार मिल रहे हैं। किसानों यूनियन आंदोलन का चेहरा बने राकेश टिकैत भी पिछले तीन दिनों से गाजीपुर सीमा पर स्थित आंदोलन स्थल पर नहीं आए हैं।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से शक्ति मिलने के बाद दिल्ली पुलिस ने टीकरी सीमा से अवरोधकों को हटाना शुरू कर दिया है। यहां लगे आठ अवरोधकों में से चार अवरोधक हटा दिये गए हैं। इसके अलावा गाजीपुर सीमा से भी अवरोधकों को हटाने का कार्य चल रहा है। दिल्ली की सीमाओं को घेरे बैठे यूनियन के सदस्यों पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय वज्रपात से कम नहीं है। इस समय इन यूनियनों के बीच आंतरिक संबंध भी कोई विशेष अच्छे नहीं हैं। सूत्रों के अनुसार इन सभी घटनाओं और बिगड़ते संबंधों के कारण आंतरिक रूप से राकेश टिकैत भी क्षुब्ध हैं।
फिर भी जोश भरने की तैयारी
किसान यूनियन के आंदोलनकारियों पर पुलिस का दबाव लगातार बढ़ रहा है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अधीन उनसे रास्ता छोड़ने को कहा जार रहा है। ऐसी परिस्थिति में यूनियन के सदस्यों के टूट रहे मनोबल को बनाए रखने के लिए राकेश टिकैत ने 6 नवंबर को सिंघु सीमा पर किसानों की एक बैठक बुलाई गई है। आशा है कि इस बैठक में राकेश टिकैत अपने विवादित बयानों से किसान यूनियन के आंदोलित किसानों में जोश फूकेंगे।
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ये है नाराजगी का कारण
राकेश टिकैत के केंद्र सरकार को दिये जानेवाले धमकी भरे बयान आंदोलनकारियों में जोश भरते रहे हैं। लेकिन, किसान यूनियनों के बीच इस बार मतभेदों की खाई गहरी है। इसके कारण और कारकों को जानने के लिए संवाददाता नरेश वत्स ने इन आंदोलन स्थलों पर जाकर बात की, जिसके बाद निन्मलिखित बातें सामने आई हैं…
- महत्वाकांक्षाएं बढ़ गई हैं
- शक्ति प्रदर्शन के चक्कर में बढ़ गई गुटबाजी
- हरियाणा के किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने अपनाई अलग राह
- उत्तर प्रदेश चुनावों में टिकैत के भी जोड़तोड़ में लगने की खबर
- योगेंद्र यादव भी हो चुके हैं कार्रवाई का शिकार, वे आंदोलन में रणनीतिकार के रूप में रहे हैं सम्मिलित
- किसान नेताओं के निलंबन से आपसी अनबन तेज