चिपको आंदोलन के प्रणेता और विख्यात पर्यावरणविद् पद्मविभूषण सुंदरलाला बहुगुणा का निधन हो गया है। वे कोरोना संक्रमण से ग्रसित हो गए थे। उन्हें उत्तराखण्ड के ऋषिकेश में स्थित एम्स अस्पताल भर्ती कराया गया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पर्यावरणविद् सुंदरलाला बहुगुणा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। उन्होंने इसे देश के लिए क्षति बताया है, अपने ट्वीट संदेश में पीएम ने कहा है कि सुंदरलाल बहुगुणा ने प्रकृति से सदियों पुराने हमारे लोकाचारों को प्रकट किया था। उनके साधारण व्यक्तित्व और करुणा की भावना को भुलाया नहीं जा सकता।
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Passing away of Shri Sunderlal Bahuguna Ji is a monumental loss for our nation. He manifested our centuries old ethos of living in harmony with nature. His simplicity and spirit of compassion will never be forgotten. My thoughts are with his family and many admirers. Om Shanti.
— Narendra Modi (@narendramodi) May 21, 2021
जीवन परिचय
सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म उत्तराखण्ड के मरोडा में हुआ था। प्रथामिक शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात वे पाकिस्तान चले गए थे। वहां लौटने के बाद वर्ष 1949 में वे दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए कार्य करने लगे। इसी काल में वे मीरा बेन और ठक्कर बाप्पा के संपर्क में भी आए, उन्होंने टिहरी में ठक्कर बाप्पा होस्टल की स्थापना की। इसके अलावा दलितों को मंदिर में प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए आंदोलन भी किया।
सुंदरलाला बहुगुणा ने पत्नी विमला नौटियाल के सहयोग से सिलयारा में ‘पर्वतीय नवजीवन मण्डल’ की स्थापना भी की था। वर्ष 1971 में शराब की दुकानों के विरोध में उन्होंने सोलह दिनों तक अनशन किया। इसके पश्चात वृक्ष कटाए के विरोध में शुरू किये गए चिपको आन्दोलन के नाम निशअव में वृक्षमित्र के रूप लिया जाने लगा।
उत्तराखंड में बड़े बांधों के निर्माण, लकड़ी के औजारों के निर्माण के लिए जंगलों की कटाई के लिए उन्होंने लंबे समय तक आंदोलन किया था।
विभिन्न पुरस्कारों से हुए सम्मानित
- 1980 में अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्था से पुरस्कृत
- 1981 में स्टॉकहोम का वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार
- 1981 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित
- 1985 में जमनालाल बजाज पुरस्कार
- 1986 में जमनालाल बजाज पुरस्कार (रचनात्मक कार्य)
- 1987 में राइट लाइवलीहुड पुरस्कार (चिपको आंदोलन)
- 1987 में शेर-ए-कश्मीर पुरस्कार
- 1987 में सरस्वती सम्मान
- 1989 में आइआइटी रुड़की से डॉक्टरेट की मानद उपाधि
- 1998 में पहल सम्मान।
- 1999 में गांधी सेवा सम्मान
- 2000 में सांसदों के फोरम द्वारा सत्यपाल मित्तल पुरस्कार
- 2001 में पद्म विभूषण से सम्मानित