Delhi: आप की आतिशी पारी, कहीं चुनाव में न पड़ जाये भारी!

वह बिना एलजी की सहमति के बिना मुख्यमंत्री कार्यालय या दिल्ली सचिवालय नहीं जा सकते थे। एलजी के बिना सहमति के किसी सरकारी फाइल पर हस्ताक्षर नहीं कर सकते थे।

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  • नरेश वत्स

Delhi: दिल्ली सरकार के आबकारी नीति घोटाले (Delhi Government’s Excise Policy Scam) पर दुनिया-जहान के अखबारों में सुर्खियां बने आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) (आआपा) के संरक्षक अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने तिहाड़ जेल से जमानत पर बाहर आने के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते हुए आतिशी को कमान दे दी। राजनीतिज्ञ व विशेषज्ञ इसे तकनीकी रूप से सियासी दांव मान रहे हैं। एक वर्ग का मानना यह है कि मौजूदा स्थिति में केजरीवाल के पास मुख्यमंत्री रहते हुए भी सत्ता नहीं थी चूंकि कोर्ट ने उन्हें सशर्त जमानत दी है। इन शर्तों की वजह से वह अपनी शक्तियों का प्रयोग नहीं सकते थे।

वह बिना एलजी की सहमति के बिना मुख्यमंत्री कार्यालय या दिल्ली सचिवालय नहीं जा सकते थे। एलजी के बिना सहमति के किसी सरकारी फाइल पर हस्ताक्षर नहीं कर सकते थे। इसके अलावा पब्लिक मंच से इस मामले में बयान नहीं दे सकते व साथ ही वह इस केस से संबंधित किसी गवाह से न संपर्क कर सकते हैं न ही कोई बात कर सकते हैं।

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पार्टी के वरिष्ठ नेता हो सकते हैं नाराज
आतिशी को मुख्यमंत्री बनाने का आआपा के अंदर नकारात्मक व सकारात्मक दोनों तरह का माहौल बना गया। नकारात्मकता की स्थिति इसलिए ज्यादा मानी जा रही है कि पार्टी में आतिशी से पुराने व बड़े कद के नेता भी हैं, जिनको मुख्यमंत्री बनाया जा सकता था जैसे कि संजय सिंह, गोपाल राय, सोमनाथ भारती आदि। दरअसल पार्टी के जो नेता केजरीवाल के साथ के हैं या यूं कहें कि जो आंदोलन के समय से लेकर अब तक साथ हैं व उनकी वरिष्ठता आतिशी से कहीं बड़ी है, वह मन ही मन तो बहुत दुखी होंगे। बहुत सारे ऐसे नेता भी हैं, जो आतिशी से ज्यादा प्रभावशाली भी हैं। राजनीति में महत्वकांक्षा का बड़ा महत्व है। हर नेता कुर्सी के पीछे डोलता है। आतिशी के मुख्यमंत्री बनने से ऐसे नेताओं के हाथों से तोते उड़ गए हैं। उनका आआपा के प्रथम पंक्ति के नेताओं से मोहभंग हो गया है। आआपा में कभी भी कुर्सी का कलह ज्वालामुखी बनकर फूट सकता है। एक सवाल यह भी है कि आखिर बड़े नेता आतिशी को अपना बॉस क्यों माने? क्या मात्र केजरीवाल के कहने से वह यह बात समझ जाएंगे।

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चुनाव में मात्र 4-5 महीने बाकी
आआपा का शीर्ष नेतृत्व ऐसे लोगों को यह संदेश देने का प्रयास कर रहा है कि वह पार्टी के किसी भी स्तर के नेता को इतना बड़ा मौका दे सकते हैं, जिससे पार्टी के अधिकतर कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ सकता है। लेकिन एक वर्ग का यह भी मानना है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में केवल चार-पांच महीने ही रह गए हैं, ऐसे समय में आतिशी को मुख्यमंत्री बनाने का मुद्दा फायदेमंद हो सकता है। वैसे इसे जमकर भुनाने की योजना तैयार की जा रही है। एक महिला को मुख्यमंत्री बनाने पर भी महिलाओं कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाने का कार्ड भी खेलने की तैयारी है। सवाल व समीकरण कई तरह के हैं। सोशल मीडिया के इस दौर में कोई भी बात कही हुई सोशल मीडिया एक्सपर्ट भूलने नहीं देते।

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क्या बदलेगी आप की छवि?
मात्र मुख्यमंत्री बदलने से क्या पार्टी की छवि बदलेगी, ऐसा मुश्किल है। वफादार तो अब भी यही कहते हैं कि आम आदमी पार्टी का भरोसा अभी भी केजरीवाल पर ही है। मगर इस्तीफा देकर पटकथा में नायक बनने की कोशिश को दिल्ली के लोग कुबूल नहीं कर पा रहे। बहरहाल, आतिशी पर अब बड़ी जिम्मेदारी आई गई है। उनके पास सबसे ज्यादा विभाग हैं। विधानसभा चुनाव में अब ज्यादा समय नहीं है और केजरीवाल पर संकट अभी भी बरकरार है। सवाल कई हैं…। क्या केजरीवाल पहले की तरह ऊर्जावान होकर चुनाव लड़ पाएंगे और यदि इस बीच दोबारा जेल चले गए तो किसके चेहरे पर चुनाव होगा? केजरीवाल ने अब आतिशी को कमान दी है तो अब उन्हें रणनीति के साथ पार्टी की छवि को सुधारते हुए काम करना होगा। मुख्यमंत्री जैसे पद की जिम्मेदारी बेहद गंभीर व बड़ी मानी जाती है। योग्यता व अपनी आक्रामक शैली का फायदा उठाते हुए आतिशी को पार्टी को सजाना होगा व साथ ही सबको साथ लेकर कार्य करने होंगे। चुनाव में समय कम है और जिम्मेदारी ज्यादा। यदि इस बार कांग्रेस व आम आदमी पार्टी का गठबंधन नहीं हुआ तो त्रिकोणीय मुकाबले को लेकर चुनाव बेहद चुनौतीपूर्ण होंगे।

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