सावरकर बंधु: वह क्रांति पुरोधा जिन्होंने किशोरावस्था में शुरू किया क्रांतिकार्य

देश की स्वतंत्रता के लिए क्रांति कार्य करनेवालों में सभी आयु वर्ग के लोग सहभागी थे। जिस स्वर्णिम स्वतंत्रता का साकार रूप भारत के लोग अनुभूत कर रहे हैं, वह उस काल के क्रांतिकारियों का स्वप्न था, जिसके लिए उन्होंने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।

208

केंद्र सरकार के संस्कृति कार्य मंत्रालय ने इस बात की सहमति दे दी है कि, वह देश की स्वतंत्रता के लिए प्राण न्यौछावर करनेवाले बाल या किशोरवयीन क्रांतिकारियों का एक संग्रहालय निर्मित करेगा। इसके अलावा इन क्रांतिवीरों का मोनोग्राम भी बनाया जाएगा। यह सहमति भाजपा के सांसद डॉ.राकेश सिन्हा की मांग के बाद मिली है। पारतंत्रकाल के किशोरवयीन क्रांति की उस ज्वाला को प्रखरता देनेवाला नाम रहा है स्वातंत्र्यवीर सावरकर और उनके कनिष्ठ बंधु नारायण राव का।

स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने 12 वर्ष की आयु से राष्ट्र कार्यों की राह पकड़ ली थी, उनके साथ उनके बड़े भ्राता बाबाराव बाद में जुड़े तो छोटे बंधु नारायणराव सावरकर भी किशोरवयीन आयु में क्रांतिकार्य से जुड़ गए।

ये भी पढ़ें – देश के बाल क्रांतिवीरों को सम्मान… वह मांग हुई पूरी

और छोटी सी आयु में बड़ी शपथ
स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने बारह वर्ष की आयु में क्रांतिकार्य शुरू किया था। उन्होंने इस आयु में स्वदेशी विषय पर फटका (मराठी साहित्य का एक प्रकार) लिखा, साथ ही सवाई माधवराव का रंग उड़ानेवाला फटका भी लिखा।

प्लेग महामारी से पीड़ित देश बंधुओं के साथ अन्याय, हिंसा और अत्याचार करनेवाले अंग्रेज अफसर रैंड का वध करनेवाले चाफेकर बंधु और रानडे को फांसी हो गई। इससे सावरकर का तरुण रक्त उबल पड़ा। आयु के मात्र पंद्रहवें वर्ष में उन्होंने देश को स्वतंत्रता दिलाने की शपथ ली। इसके साथ ही चाफेकर बंधुओं के बलिदान पर फटका भी लिखा।

संगठन का निर्माण
वीर विनायक ने कम आयु में ही राष्ट्र भक्त समूह नामक गुप्त संगठन का निर्माण किया, जो विश्व में अभिनव भारत के नाम से फैल गया। उन्होंने अपने गुप्त संगठन को मित्र मंडल के रूप में स्थापित किया। इसी मित्र मंडल के द्वारा शिवाजी उत्सव, गणेशोत्सव मनाया जाने लगा। मित्र मंडल के संगठनात्मक कार्य में वीर सावरकर के बंधु नारायणराव सावरकर भी जुड़ गए और सार्वजनिक रूप से सामाजिक कार्य और गुप्त रूप से स्वतंत्रता क्रांति की योजना रूप लेने लगी। वीर विनायक के भाषणों और स्वातंत्र्य कवि गोविंद के लोकगीतों से नासिक गूंजने लगा, जिससे बड़ी संख्या में युवक स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित हुए। शिथिल पड़ चुके मस्तक और हाथों को चेतना मिली। अध्यात्म में लिप्त बाबाराव सावरकर भी क्रांति कार्यों से जुड़ गए और अपने कर्तृत्ववान भाई के साथ खड़े हो गए। इस निर्णय के साथ ही सावरकर बंधुओं ने अपने पूरे परिवार और पारिवारिक जीवन को राष्ट्रकार्य में झोंक दिया।

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.