कम्युनिस्ट पार्टी के नेता कन्हैया कुमार अपने लिए नई भूमि तैयार करने में लगे हैं। ऐसी चर्चा है कि वे इसके लिए गैर एनडीए दलों में जुड़ सकते हैं, इसी कड़ी में कन्हैया ने कांग्रेस के भईया (कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी) से भेंट की। इसके अलावा गुजरात से जिग्नेश मेवाणी के भी कांग्रेस से नजदीकी संबंध होने की बात सामने आ रही है।
बिहार में सियासत के दो सिरे एक दूसरे से मिल सकते हैं। एक को पार्टी की डूबी छवि को पुनर्जीवन देना है तो दूसरा अपना राजनीतिक भविष्य स्थापित करना चाहता है। बिहार में कांग्रेस की स्थिति बहुत अच्छी नहीं रही है। पार्टी में टूट की आशंका भी व्यक्त की जा रही थी, जिसके बाद जुलाई 2021 में विधायकों को दिल्ली बुलाया गया था। इन सबसे राहुल गांधी ने भेंट की और संभावित टूट को टाल दिया। विधायकों को इस भेंट में आश्वासन दिया गया था कि हर तीन महीने में बिहार के नेताओं के साथ राहुल गांधी स्वयं एक बैठक करेंगे और आवश्यक निर्णय उस आधार पर लिये जाएंगे।
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हाशिये पर कांग्रेस
बिहार में कांग्रेस पार्टी पिछले तीन दशकों से हाशिये पर है। पिछले चुनाव में तो पार्टी अपने सहयोगी दलों से भी कम सीटें जीत पाई। राज्य में उसने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें से मात्र 19 सीटों पर ही जीत मिली। बिहार की सत्ता से बेदखल हुए 31 साल हो गए हैं। कांग्रेस राज के अंतिम मुख्यमंत्री डॉ.जगन्नाथ मिश्र थे। 1990 में कांग्रेस से जनता दल ने सत्ता छीन ली और तब से आज तक कांग्रेस चुनाव दर चुनाव नीचे खिसकती चली गई।
लक्ष्य 2024-2025
कांग्रेस के करीबियों के अनुसार राहुल गांधी बिहार में 2024 के लोकसभा चुनाव और 2025 के विधान सभा चुनाव की योजना पर काम कर रहे हैं। इसके लिए वे विधायकों से मिलकर उनकी राय और प्रदेश की स्थिति का जायजा लेते रहते हैं। इसके लिए भईया और मईया को अब कन्यैया में भी आशा दिखती हो इससे इन्कार नहीं किया जा सकता।
युवा कांग्रेसियों ने छोड़ा हाथ
देश में कई युवा नेता कांग्रेस से नाता तोड़ चुके हैं। इसमें उत्तर प्रदेश से जितिन प्रसाद, पश्चिम बंगाल से सुश्मिता देव, मध्य प्रदेश से ज्योदिरआदित्य सिंधिया और महाराष्ट्र से प्रियंका चतुर्वेदी शामिल हैं। ऐसी स्थिति में कांग्रेस के भईया-मईया को बिहार में पार्टी की नैय्या पार लगाने के लिए कन्हैया का सहारा मिल जाए तो कोई नई बात नहीं है।
गुजरात के मेवाणी पर भी नजर
राज्य में कांग्रेस विपरीत परिस्थिति से जूझ रही है। प्रदेश में वो दो दशक से सत्ता से वंचित है कांग्रेस। 2017 के चुनाव में यद्यपि पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया और उसके 77 विधायक विधान सभा पहुंचे, लेकिन इस आंकड़े में भी टूट शुरू हो गई और अब मात्र 65 विधायक ही बचे हैं। गुजरात में कांग्रेस के पास न तो प्रदेश अध्यक्ष है, न विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष। ऐसी स्थिति में राजनीतिक गलियारे से टैलेंट हंट की आस लगाई कांग्रेस को अब जिग्नेश मेवाणी में भी संभावनाएं दिखने लगी हैं। वैसे पिछले चुनाव के पहले पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल को लेकर बड़ी उम्मीदें थीं, परंतु वे भी सत्ता का समीकरण साधने में असफल रहे।