राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए बेताल हो चुकी कांग्रेस का दर्द दिल्ली से निकलकर राज्यों में पहुंच गया है। ‘जी 23’ या गुट-23 से परेशानी कम नहीं हुई थी कि सत्तासीन राज्यों में नेता भिड़ने लग गए। केरल में तो पार्टी के साथ 43 साल बितानेवाले नेता ने हाथ का साथ छोड़ दिया है। जबकि राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़ आदि में गिरोहबाजी चरम पर है।
2019 में राहुल गांधी ने बतौर अध्यक्ष अपना छोड़ दिया था, इसके बाद पार्टी को नया राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनना था। कॉंग्रेस कार्य समिति की बैठक पर बैठक होती रही लेकिन, निर्णय कुछ नहीं हो पाया। तात्कालिक आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए फिर सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष के रूप में चुना गया। लेकिन इस प्रयत्न में कांग्रेस के वरिष्ठतम 23 नेताओं के गुट ने गांधी परिवार के बाहर से अध्यक्ष चुनने का स्वर फूंक दिया। इस निर्णय पर घमासान हुए, इन्हें धीरे-धीरे बैठकों से बाहर किया जाने लगा। ये नेता भी कभी दिल्ली तो कभी जम्मू के पांच सितारा होटल में बैठकें करने लगे। जम्मू में तो जनसभा में कहा गया कि, पार्टी कमजोर हो रही है, हम लोग मजबूत करने के लिए साथ आए हैं।
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कांग्रेस के सिरदर्द का गुट-23 समाप्त हो पाता कि, राज्यों में विरोध का स्वर ऊंचा हो गया। कांग्रेस की 6 राज्यों में सत्ता है जिसमें राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़ में उसकी अकेली की सरकार है, जबकि महाराष्ट्र, तामिलनाडु और झारखंड में वह सहयोगी है। लेकिन, विरोध और ताकत का ऐसा जुनून है कि नेता राज्यों में भिड़े हुए हैं। विपक्ष भले ही कुछ न बिगाड़ पाए परंतु आपस में भिड़े नेता जरूर बनी सत्ता की राह को बिगाड़ सकते हैं।
मध्य प्रदेश
मुरझाई कांग्रेस के लिए मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मिली जीत ने संजीवनी का काम किया था। परंतु, यह संजीवनी पार्टी के अंदर पनप रहे अविश्वास के आगे नाकाम हो गई। मध्य प्रदेश में कट्टर कांग्रेसी माधवराव सिंधिया के सुपुत्र ज्योतिरआदित्य सिंधिया के कुनबे में कमल खिल गया और कमलनाथ की सरकार गिर पड़ी।
राजस्थान
मध्य प्रदेश की तरह ही लौ राजस्थान में सुलग रही है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच लंबे काल से अनबन चल रही है। एक बार तो सचिन पायलट अपने समर्थकों के साथ होटल में अज्ञातवास में चले गए थे, परंतु जब पार्टी हाईकमान से समझाया उनके मुद्दों को सुना, उनके समर्थकों के लिए अच्छे प्रस्ताव दिये तो वे मान गए। परंतु, उन प्रस्तावों पर हुआ कुछ नहीं। इसके कारण असंतोष का पायलट कभी भी सरकार की जहाज को धराशाई कर सकता है।
पंजाब
राज्य में विधान सभा चुनाव होने हैं। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह अपनी ताकत को कम नहीं आंकना चाहते जबकि, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बने नवजोत सिंह सिदधू अपना निर्णय ही सर्वमान्य मनवाना चाहते हैं।
सिद्धू मुख्यमंत्री पर कटाक्ष का एक भी अवसर छोड़ना नहीं चाहते हैं फिर चाहे सिद्धू की पत्नी का टिकट काटने की बात हो या कटकपुरा पुलिस फायरिंग में रिपोर्ट में देरी की बात हो। विधान सभा चुनावों के पहले कांग्रेस आलाकमान इस आंतरिक झगड़े को मिटाना चाहता है इसके लिए उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को प्रभारी बनाकर भेजा भी गया है, परंतु सिद्धू और कैप्टन की तकरार के सामने रावत के हाथ भी थक गए।
छत्तीसगढ़
भाजपा के मुख्यमंत्री रमण सिंह से नाराजगी ने एंटी इन्कमबेन्सी का काम किया और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को बहुत अच्छा बहुमत मिला। ऐसी सरकार बनी कि पांच वर्ष उसे कोई छू भी न पाएगा। परंतु, आंतरिक विरोधों की लौ यहां भी सुलगने लगी है।
27 जुलाई 2021 को तो स्वास्थ्य मंत्री टीएससिंह देव अपनी ही सरकार के विरोध में उतर गए और विधान सभा से वॉकआउट कर दिया। इसके बाद कांग्रेस में अतर्विरोध बढ़ गया है। मुख्यमंत्री बूपेश बघेल को दिल्ली बुलाया गया, इस बीच चालीस से अधिक विधायक भी दिल्ली में डेरा डाले रहे, कृषि मंत्री रविंद्र चौबे और क्लाइमेट चेंज मिनिस्टर मोहम्मद अकबर को भी हवाई अड्डे से उड़ान भरते देखा गया। हालांकि, इस सबके बावजूद मुख्यमंत्री अब भी भूपेश बघेल ही हैं परंतु, टीएससिंह देव के मन में मुख्यमंत्री बनने की आशा कब फूल बनकर फिर खिल जाए कह नहीं सकते।
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केरल
वायनाड सीट से राहुल गांधी को संसद पहुंचानेवाले राज्य केरल में कांग्रेस सस्पेंडेड मुद्रा में है। यहां 43 वर्षों तक पार्टी की सेवा करनेवाले पूर्व प्रदेश महासचिव केपी अनिल कुमार ने इस्तीफा दे दिया है। उन्हें अनुशासनहीनता के कारण निलंबित कर दिया गया था। इसके साथ ही केरल में कांग्रेस का तालाबंद हो गया है। जबकि यहां का नेतृत्व राहुल गांधी और शशि थरूर जैसे नेता करते हैं।
महाराष्ट्र
राज्य में महाविकास आघाड़ी की सरकार है। इसमें कांग्रेस तीसरा घटक दल है। सरकार में आने के बाद बड़े नेता शांति धारण किये बैठे हैं। पृथ्वीराज और सुशील कमार जैसे शीर्ष के दिल्ली कनेक्शनवाले नेता भी कुछ नहीं बोल रहे हैं। जबकि प्रदेशाध्यक्ष के लिए जोड़तोड़ खूब चली। कार्याध्यक्ष बनाए गए ताकि असंतोष न पनपे परंतु, यह निर्णय भी लंबा नहीं टिक पाया और आलाकमान के आदेशों से सौम्य और शालीन स्वभाव के बालासाहेब थोरात को प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई। इस पर भी कुछ गुटों की आत्मा शांत नहीं हुई। विधान सभा अध्यक्ष नाना पटोले ने तो अपना पद भी छोड़ दिया। इसके बाद दिल्ली के वरदान से बालासाहेब थोरात गए और नाना पटोले ने प्रदेशाध्यक्ष की कमान संभाली, परंतु उनका मन अब भी भरा नहीं है, सूत्रों के अनुसार उनके मन में ऊर्जा मंत्री की कुर्सी बैठ गई है।