कांग्रेस के जी-23 से टूटा यह बागी नेता अब बना भाजपाई, क्या परिवार के साथ हो लिये प्रसाद?

कांग्रेस के जी-23 में से एक नेता ने अपनी राह बदल ली है। पीढि़यों से कांग्रेस में रहे इस नेता का जाना उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के पहले बड़ा मायना रखता है।

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कांग्रेस पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन की मांग करनेवाले नेताओं में से एक जितिन प्रसाद ने भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ले ली है। जितिन प्रसाद का कांग्रेस छोड़ना उत्तर प्रदेश कांग्रेस की लिए बड़ा झटका माना जा सकता। उनके पिता जितेंद्र प्रसाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उपाध्यक्ष थे। लेकिन सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने के विरुद्ध उन्होंने आवाज उठाई और चुनाव भी लड़ा।

विरोध का स्वर जितिन प्रसाद को पिता जितेंद्र प्रसाद से ही मिला है। पिता ने सोनिया गांधी के विरुद्ध स्वर उठाया था अब पुत्र ने फिर उसी मुद्दे पर आवाज उठाई तो उनका नाम कांग्रेस पार्टी के उन 23 नेताओं में सम्मिलित हो गया। इन सभी नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष पद पर गांधी परिवार के बाहर के किसी नेता की नियुक्ति के लिए चिट्ठी लिखी थी। इसके बाद लखीमपुर खीरी की कांग्रेस यूनिट ने जितिन प्रसाद को पार्टी से निकालने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया और हाई कमांड को भेज दिया। जितिन प्रसाद वैसे राहुल गांधी के नजदीकी माने जाते थे, परंतु उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष न बनाए जाने के बाद से नाराज चल रहे थे।

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खानदानी नेतृत्व का विरोध
जितेन्द्र प्रसाद से जितिन प्रसाद पिता पुत्र दोनों ही अपने विचार प्रकट करने में कभी पीछे नहीं रहे। जितेंद्र प्रसाद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और नरसिम्हा राव के राजनीतिक सलाहकार थे। उत्तर प्रदेश के शहजहांपुर में बड़े बाबा साहब की कोठी प्रसिद्ध है। यहां कांग्रेस का झंडा लंबे काल तक लहराता रहा। जब तक जितेंद्र प्रसाद रहे शहजहांपुर में कांग्रेस की स्थिति बहुत ही मजबूत थी। 1971 में पहली बार जितेंद्र प्रसाद ने चुना लड़ा और जीत प्राप्त की। इसके बाद ने हमेशा गांधी परिवार के विशेष लोगों और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में गिने जाते रहे।

लेकिन वे अपने विचारों को लेकर स्पष्ट थे, उन्होंने सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने का विरोध किया। यही नहीं वर्ष 2000 में सोनिया गांधी के विरुद्ध चुनाव भी लड़ा, परंतु पराजित हो गए। इसके बाद ही उनकी मृत्यु हो गई और राजनीतिक बागडोर पुत्र जितिन प्रसाद के हाथ आ गई। ब्राम्हण चेहरे और सशक्त नेतृत्व क्षमता के लिए यह प्रसाद परिवार जाना जाता रहा है।

जितिन प्रसाद ने वर्ष 2001 में कांग्रेस की जिम्मेदारी संभाली। 2004 में लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत गए। 2008 में केंद्रीय इस्पात राज्यमंत्री बने, इसके बाद वर्ष 2009 में धौरहरा सीट से चुनाव लड़ा और जीत प्राप्त की। वर्ष 2009 से 2011 तक सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री रहे, वर्ष 2012 से 2014 तक मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री का कार्यभार संभाला।

भाजपा का दामन, परिवार की राह
उत्तर प्रदेश में अगले वर्ष चुनाव है, कांग्रेस की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। जितिन प्रसाद के गृह क्षेत्र शाहजहांपुर में भी पार्टी की परिस्थिति ढलान पर है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस की उपेक्षाओं से अलग-थलग पड़े जितिन प्रसाद में भाजपा की राह साध लिया।

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जितिन जिस भाजपा के साथ अब चल पड़े हैं वह उनके परिवार के लिए नया नहीं है। उनके चचेरे भाई जयेश प्रसाद और उनकी पत्नी निलिमा प्रसाद ने 2017 में स्थानीय निकाय चुनाव के पहले भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। अब जितिन प्रसाद के कांग्रेस छोड़ने के बाद बड़े बाबू की वह कोठी जहां प्रदेश का प्रभावशाली राजनीतिक परिवार रहता है और वर्षों से कांग्रेस का झंडा लहराता रहा वहां अब भाजपा का कमल हवा से बातें करेगा।

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