Canada: भारत और कनाडा में तनावपूर्ण संबंधों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में सुधार की उम्मीद को झटका लगा है। जी- 7 शिखर सम्मेलन में भारत को नहीं बुलाया गया है। भारत ने अभी तक इस पर आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कनाडा जाना मुश्किल है। कनाडा 15 -17 जून को अल्बर्टा के कनानास्किस रिसोर्ट में जी-7 शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने वाला है।
भारत कनाडा संबंधों पर खालिस्तान की छाया
भारत और कनाडा के बीच संबंध उसे समय तनावपूर्ण हो गए, जब सितंबर 2023 में कनाडा के तत्कालीन प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने आरोप लगाया कि खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की गोली मारकर की गई हत्या में भारत सरकार के एजेंट शामिल हैं। वर्ष 2023 में निज्जर की हत्या कर दी गई थी। भारत ने बड़े सख्त लहजे में टूडो के आरोपों को खारिज कर दिया था। लेकिन इसके बाद दोनों देशों ने एक दूसरे के राजनयिकों को निकाल दिया था ।
कनाडा में खालिस्तान समर्थक गतिविधियां
भारत लगातार कनाडा में खालिस्तान तत्वों की गतिविधियों की जानकारी कनाडा सरकार देता रहा है। विदेशी मामलों के जानकार संजय शर्मा कहते हैं कि खालिस्तान समर्थक विचारधारा के लोगों का कनाडा सरकार पर प्रभाव है। खासकर ब्रिटिश कोलंबिया और ओंटारियो प्रांत में वे प्रभावी हैं। मार्च में हुई बातचीत में भारत ने स्पष्ट कहा था कि खालिस्तान गतिविधियों पर रोक के बिना संबंध सामान्य नहीं होंगे। ऐसे में भारत को ना बुलाना ज्यादा चौंकाने वाली बात नहीं है।कनाडा में सिख समुदाय खासकर पंजाब से आए सिख प्रवासी करीब 8 लाख से ज्यादा हैं।
जी-7 क्या है?
जी -7 एक अंतरराष्ट्रीय मंच है, जिसमें दुनिया की सबसे विकसित और संपन्न लोकतांत्रिक अर्थव्यवस्थाएं शामिल है। इस मंच के सदस्य देश वैश्विक आर्थिक, राजनीतिक, सुरक्षा , जलवायु और तकनीकी मुद्दों पर विचार विमर्श करते हैं। फ्रांस ,इटली, कनाडा, जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका और जापान इसके पूर्णकालिक सदस्य हैं। यूरोपीय संघ भी जी-7 बैठकों में एक स्थाई पर्यवेक्षक के रूप में शामिल रहता है, जबकि भारत जी-7 का सदस्य नहीं है। 2019 से भारत को आमंत्रित देश के रूप में कई सम्मेलन में बुलाया जाता रहा है।
जी-7 संगठन की प्रासंगिकता पर सवाल
विदेशी मामलों के जानकार कहते हैं कि दुनिया में अब चीन, ब्राजील, साउथ अफ्रीका और भारत जैसी बड़ी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बिना सिर्फ सात देश का समूह वैश्विक प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता। इसलिए अब कई बार इसे जी 20 या बड़े बहुपक्षीय मंचों के मुकाबले कमजोर माना जाता है। लेकिन यह बात गौर करने वाली है कि ऐसा देश आज भी दुनिया की 40 फीसदी जीडीपी को नियंत्रित करते हैं। अंतरराष्ट्रीय नीतियों में इनका दबदबा बना हुआ है।