मेरी अवाज सुनो! साहेब, संवेदनहीन पुलिस वालों के लिए भी कानून हो  

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मुंबई। कोरोना काल कई दिक्कतें लेकर आया है। महामारी में मौत जितनी पीड़ादायी है उससे भी अधिक कष्टकारी है जीना। इन परिस्थितियों से जूझते परिवार के लिए कभी-कभी बद-दिमाग पुलिसिया पेंच और ज्यादा दिक्कतें खड़ी कर देता है। ऐसी ही घटना का वीडियो प्रस्तुत है जिसमें पुलिसिया दादागिरी क्या होती है इसका सीधा चित्रण है। इससे त्रस्त परिवार ने अब ‘साहेब’ के दरबार में गुहार लगाई है… पेश है एक जनसामान्य की व्यथा उसकी ही लिखी ये कथा…

मित्रों,

सुशांत सिंह राजपूत प्रकरण को लेकर मुंबई पुलिस की बहुत चर्चा है इसके अच्छे और बुरे दोनों पक्ष हैं। इस मामले में कंगना जो कह रही हैं वो हो सकता है सत्य भी होगी। लेकिन पुलिस क्या है इसका अनुभव मुझे और मेरे परिवार को हाल ही में तब हुआ जब मेरी मां का 6 सितंबर 2020 को निधन हो गया। हम परिवार के साथ दौलत नगर स्मशान भूमि में मौजूद थे। इतनें में मेरी बहन अचानक गिर पड़ी। हम उसे अस्पताल लेकर जाने के लिए बाहर आए लेकिन रिक्शा नहीं मिला। इस बीच हम उसे सामान्य करने के लिए प्रयत्न कर रहे थे। लेकिन सफलता नहीं मिली। अंत में हम परिवार के 6 लोग मेरे चाचा की कार से अस्पताल के लिए निकले। हम हाइवे पर स्थित ओमकारेश्वर मंदिर पर पहुंचे ही थे कि पुलिस ने हमारी कार को रोक लिया। हमने वहां पुलिस कर्मियों को बताया कि हम मां की अंत्येष्टि करके स्मशान से आ रहे हैं और बहन की तबीयत बहुत अधिक बिगड़ी है उसे तत्काल अस्पताल ले जा रहे हैं। लेकिन पुलिसकर्मी कार के कागज दिखाने की हठ करते रहे। इस बीच ड्राइवर का लाइसेंस और चाबी गाड़ी से उन्होंने निकाल लिया। हम विनंती करते रहे अस्पताल लेकर जाने दीजिये वापस आकर हम आपको सभी कागज दिखा देंगे। लेकिन हमारी बिनती और भावनाओं का पुलिसकर्मियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वहां पर मौजूद सहायक पुलिस निरिक्षक सयाजी बाबुशा कोलेकर परिस्थिति को समझने के बजाय हम पर ही क्रोधित हो गए। उन्होंने मेरे बड़े भाई का कॉलर पकड़कर धमकी देने और पिटाई की बात शुरू कर दी। कोलेकर साहब ने धमकी दी कि तुझपर ऐसी धारा लगाकर अंदर करुंगा कि बाहर का प्रकाश भी नहीं देख पाएगा। इस बीच वहां भीड़ लग गई थी और जनसामान्य वीडियो शूट करने मे व्यस्त थे। दूसरी तरफ गाड़ी में मेरी बहन की स्थिति बिगड़ती जा रही थी। उसकी स्थिति को देखते हुए कुछ सज्जन जो तब तक जुट गए थे उन्हें हम पर तरस आया और उन्होंने पुलिस अधिकारी से हमें छोड़ने की मांग की। जनता के बढ़ते दबाव को देखकर सहायक पुलिस निरिक्षक सयाजी कोलेकर ने छोड़ दिया और हम अस्पताल के लिए वहां से निकल पाए। बहन को अष्टविनायक अस्पताल में आईसीयू में भर्ती कराया गया। इलाज से बहन ठीक हो गई और मेरे परिवार से मां के जाने के बाद टूटा पहाड़ दूसरे बड़े अनर्थ से बच गया। मैं इस घटना का एक वीडियो और अस्पताल के कागज जोड़ रहा हूं। हम पुलिस का सम्मान करते हैं। लेकिन ऐसे संवेदनहीन पुलिस कर्मियों के कारण पूरे पुलिस प्रशासन पर प्रश्न खड़ा हो जाता है। पुलिस कर्मियों के लिए भी कड़ा कानून हो जिससे ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो पाए।

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