‘मनसे’ से इसलिए बनी रहेगी बीजेपी की दूरी!

महाराष्ट्र में आगामी चुनावों में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के साथ होने के बावजूद बीजेपी ने अकेले दम पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। कयास लगाए जा रहे थे कि बीजेपी शिवसेना के मराठी वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए मनसे से गठबंधन कर सकती है लेकिन बीजेपी मनसे के साथ जाकर अपने वोटरों का मोहभंग नहीं करना चाहती है।

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महाराष्ट्र सरकार के तीन घटक दल एक साथ चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके हैं। ऐसे में कयास लगने लगे थे कि बीजेपी भी मनसे के साथ गठबंधन कर सकती है। लेकिन अब बीजेपी की ओर से साफ किया गया है कि वो अकेले चुनाव लड़ेगी।

केंद्र में बीजेपी सत्ता में है इसके अलावा 12 राज्यों में उसकी अकेले की सरकार है और 6 राज्यों में एनडीए गठबंधन की सरकार है। इसको देखते हुए बीजेपी अपनी राष्ट्रीय छवि पर बट्टा नहीं लगाना चाहती है। महाराष्ट्र में आगामी चुनावों में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के साथ होने के बावजूद बीजेपी ने अकेले दम पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। कयास लगाए जा रहे थे कि बीजेपी शिवसेना के मराठी वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए मनसे से गठबंधन कर सकती है लेकिन गुजराती, उत्तर भारतीयों के मन से ‘मनसे’ उतर चुकी है ऐसी स्थिति में बीजेपी मनसे के साथ जाकर अपने वोटरों का मोहभंग नहीं करना चाहती है।

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‘मनसे’ से उत्तर भारतीयों की बेरुखी

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना भले ही हिंदुत्व के एजेंडे पर आ गई हो लेकिन उसका पुराना साया साथ नहीं छोड़ रहा है। लिहाजा पार्टी ने झंडा बदला लेकिन जो डंडा उसने उत्तर भारतीयों पर चलाया था उसकी आह अभी भी परप्रांतियों के मन में बसी है। मनसे की इस विरासत के कारण कोई भी दल उसे अपने साथ लेकर परप्रांतियों के वोट बैंकों को कम नहीं करना चाहता है।

हो सकती है फ्रैंडली फाइट!

हालांकि, साथ न रहकर भी फ्रैंडली फाइट पैटर्न पर चुनाव लड़ा जा सकता है। जिस पर बीजेपी और मनसे दोनों की ओर से कोई राय सामने नहीं आई है लेकिन राजनीति के जानकारों के अनुसार बिहार में बीजेपी ने एलजेपी के साथ मिलकर जो फ्रैंडली फाइट की वो पैटर्न महाराष्ट्र में अपना ले तो कई आश्चर्य नहीं होगा। यानी जहां बीजेपी का उम्मीदवार होगा वहां मनसे मैदान में न हो और बीजेपी कुछ सीटें मनसे के लिए छोड़ दे।

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ये था वोट बैंक का शेयर

2012 के मुंबई मनपा चुनावों में बीजेपी सबसे अधिक लाभ में रही थी। इसमें बीजेपी, शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। शिवसेना को बड़ा नुकसान हुआ लेकिन इसके बावजूद वो 84 नगरसेवकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है। जबकि बीजेपी मात्र दो नगरसेवकों के आंकड़े से पीछे रहने के कारण दूसरे नंबर पर 82 नगरसेवकों के साथ है। यदि वोट के लिहाज से देखें तो दोनों पार्टियों में मात्र 50 हजार मतों का अंतर था।

पिछले मनपा चुनाव में बीजेपी को 27.28 प्रतिशत मत मिले थे जबकि शिवसेना को 28.29 प्रतिशत मत मिले थे। इसी प्रकार कांग्रेस 17.93 प्रतिशत, एनसीपी 4.75 प्रतिशत और एमएनएस ने 7.73 प्रतिशत मत हासिल किया था।

अब यदि महाविकास आघाड़ी के तीन दल शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस एक साथ चुनाव लड़ते हैं तो इन तीनों के मत प्रतिशत जुड़ने से बड़ा इजाफा हो सकता है लेकिन यह भी सही है कि जब मतदाता के पास पर्याय अधिक होते हैं तो मत अधिक यहां-वहां होते हैं लेकिन जब दल कम होंगे तो वोट उन्हीं के बीच बंटता है। यानी महाविकास आघाड़ी के घटक दलों का वोट ऐसे में कम हो जाए तो आश्चर्य नहीं है। दूसरी बात है कि स्थानीय निकाय चुनावों में उम्मीदवारों का क्षेत्र में कार्य, लोगों से संबंध मतदान में मदद करता है। इन सभी कोणों से विचार करके ये पार्टियां अपनी रणनीति बनाएंगी ये तय है जो आनेवाले समय में नजर भी आएगा।

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