बिहार चुनावः सीएम नीतीश उन्नीस, पीएम मोदी बीस

जेडीयू और भाजपा दोनों 115-115 यानी बराबर सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगी। इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। लोक सभा के चुनावों में भले ही भाजपा जेडीयू से अधिक सीटों पर उतरती रही हो, लेकिन विधान सभा के चुनावों में हमेशा से नीतीश कुमार का पलड़ा भारी रहा है।

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पटना। बिहार विधान सभा चुनाव में कई नेताओं के भविष्य का फैसला होना है, लेकिन बदलते हालात में ऐसा लग रहा है कि नीतीश कुमार का कद पहले के मुकाबले घटा है। सीट बंटवारे से लेकर अबतक के घटनाक्रम पर नजर डालें तो यह बात स्पष्ट हो जाती है। एनडीए में शामिल जेडीयू और भाजपा पहली बार 115-115 सीटों पर चुनावी अखाड़े में अपनी किस्मत आजमाने उतरी हैं।
पहली बार भाजपा- जेडीयू को मिलीं बराबर सीटें
कुल 243 सीटों में से जहां 122 जेडीयू को दी गई हैं, वहीं भाजपा के हिस्से में 121 सीटें आई हैं। इनमें से जेडीयू ने पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तान आवामी मोर्चा को 7 सीटें दी हैं, वहीं भाजपा अपने कोटे की 121 में से 6 सीटें सन ऑफ मल्लाह मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी को देगी। इस तरह देखें तो जेडीयू और भाजपा दोनों 115-115 यानी बराबर सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगी। इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। लोक सभा के चुनावों में भले ही भाजपा जेडीयू से अधिक सीटों पर उतरती रही हो, लेकिन विधान सभा के चुनावों में हमेशा से नीतीश कुमार का पलड़ा भारी रहा है।
2015 में जेडीयू-आरजेडी का महागठबंधन
अगर 2015 के विधान सभा चुनाव को छोड़ दें तो बिहार की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी और जेडीयू हमेशा साथ में रही है। 2015 में आरजेडी और जेडीयू का महागठबंधन बना था। इसका कारण यह था कि 2013 में भाजपा की ओर से पीएम के लिए नरेंद्र मोदी की दावेदारी पर मुहर लगने से नाराज नीतीश कुमार एनडीए से दोस्ती तोड़ दिया था और लालू यादव की आरजेडी के साथ चले गए थे।
तीन बार साथ लड़ चुकी हैं चुनाव
बिहार चुनाव 2020 से पहले जेडीयू और भाजपा तीन बार मिलकर चुनाव लड़ चुकी हैं। सबसे पहले फरवरी 2005 में बिहार विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ा। इस चुनाव में 243 सीटों में से जेडीयू 138 सीटों पर लड़ी थी, जबकि भाजपा105 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। इस चुनाव में किसी को निर्णायक बहुमत न मिलने और लोजपा के किंग मेकर बनने से राष्ट्रपति शासन लग गया, जिसकी वजह से अक्टूबर में फिर चुनाव हुए।
अक्टूबर 2005 में भी जेडीयू को ज्यादा सीटें
अक्टूबर 2005 चुनाव में भी जेडीयू और भाजपा एक साथ ही थी। इस चुनाव में जहां जेडीयू ने 139 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, वहीं भाजपा को 104 सीटें मिली थीं। इस चुनाव में भाजपा-जेडीयू गठबंधन की जीत हुई थी और सरकार बनी थी।
2010 में जेडीयू 141, भाजपा 102 सीटों पर उतरी
वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में भी जेडीयू-भाजपा साथ रही। इस चुनाव में बिहार की 243 सीटों में से जेडीयू 141 और भाजपा 102 सीटों पर चुनावी मैदान में उतरी थी। इस बार भी एनडीए की ही सरकार बनी थी। इस तरह से अब तक के सभी चुनाव में जब-जब दोनों पार्टियां साथ थीं, जेडीयू की सीटों की संख्या अधिक थी, लेकिन इस चुनाव में ऐसा नहीं हुआ है और दोनों 115-115 सीटों पर चुनावी मैदान में उतरी हैं। कहा तो यह भी जा रहा है विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश सहनी भारतीय जनता पार्टी के ही चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ सकते हैं। इस तरह भारतीय जनता पार्टी की सीटों की संख्या जेडीयू से ज्यादा 121 हो जाएगी।
एंटी इंकंबेंसी पड़ सकती है भारी
राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं कि नीतीश कुमार का राजनैतिक करियर ढलान पर है और इस चुनाव में एंटी इंकंबेंसी फैक्टर हावी रहने के कारण उनकी पार्टी जेडीयू को नुकसान उठाना पड़ सकता है। कहा यह भी जा रहा है कि अगर भाजपा को जेडीयू से अधिक सीटें मिलती हैं, तो वह मुख्यमंत्री के पद पर भी दावा ठोंक सकती है।

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