बिहार चुनावः 70 पर जात-पात!

यहां उम्मीदवारों के चयन में परिवारवाद, भाई-भतीजावाद, क्षेत्रवाद, जातिवाद और अन्य हर तरह के वाद प्रभावी रहे हैं। तीनों चरणों के चुनावों में महागठबंधन और एनडीए दोनों का यही हाल है। इनमें बड़ी संख्या में राजपूत और भूमिहार उम्मीदवारों में आपसी संघर्ष है। सीमांचल के कई सीटों पर मुसलमान भी आपस में ही लड़ रहे हैं। जाति बनाम जाति की लड़ाई सबसे ज्यादा सीटों पर प्रथम चरण में ही है। ऐसी सीटों की संख्या 26 है, जबकि दूसरे चरण में 25 है।

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उम्मीदवार और दावेदार योग्यता के आधार पर तय किए जाने चाहिए। लेकिन राजनीति में ऐसा होता कम ही है। उदाहरण के लिए बिहार चुनाव को ही लिया जा सकता है। यहां विधानभा की 243 सीटों में से 70 सीटों पर जाति बनाम जाति को प्रत्याशी बनाया गया है। बिहार में चुनाव के समय जात-पात का कितना महत्व है,इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जाता है। यहां उम्मीदवारों के चयन में परिवारवाद, भाई-भतीजावाद, क्षेत्रवाद, जातिवाद और अन्य हर तरह के वाद प्रभावी रहे हैं। तीनों चरणों के चुनावों में महागठबंधन और एनडीए दोनों का यही हाल है। इनमें बड़ी संख्या में राजपूत और भूमिहार उम्मीदवारों में आपसी संघर्ष है। सीमांचल के कई सीटों पर मुसलमान भी आपस में ही लड़ रहे हैं। जाति बनाम जाति की लड़ाई सबसे ज्यादा सीटों पर प्रथम चरण में ही है। ऐसी सीटों की संख्या 26 है, जबकि दूसरे चरण में 25 है।

23 पर यादव बनाम यादव
बिहार में यादवों की आबादी अन्य जातियों की तुलना में सबसे ज्यादा है। इसलिए विभन्न दलों ने बड़ी संख्या में इस जाति को मैदान में उताकर चुनावी दांव खेला है। इसका परिणाय यह हुआ है कि 23 सीटों पर दोनों गठबंधनों की ओर से यादव प्रत्याशियों के बीच ही जंग है।

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राघोपुरः सबसे दिलचस्प बात यह है कि आरजेडी प्रमुख  लालू यादव के दोनों पुत्रों की लड़ाई भी स्वजातीय उम्मीदवारों से ही है। राघोपुर में आरजेडी के प्रत्याशी के रुप में खुद नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव हैं। जबकि, भाजपा ने इनके मुकाबले सतीश कुमार को उतारा गया है। ये वही सतीश कुमार हैं, जिन्होंने 2010 में विधानसभा चुनाव में राबड़ी देवी को शिकस्त दी थी। उस समय वो जेडीयू के उम्मीदवार थे। लेकिन इस बार बीजेपी की ओर से उन्होंने मोर्चा ले रखा है। हालांकि 2015 के चुनाव में तेजस्वी यादव ने इन्हें हराकर बदला चुकता कर लिया था। सतीश लालू यादव के ही शिष्य हैं और उनके ही मार्गदर्शन में उन्होंने राजनीति का ककहरा सीखा है। पहले वो आरजेडी के ही कार्यकर्त थे और चुनावों में राबड़ी देवी के सहयोगी हुआ करते थे।

हसनपुरः यादव बनाम यादव का दूसरा हैरतअंगेज मुकाबला हसनपुर सीट पर देखा जा सकता है। इस सीट पर आरजेडी विधायक तेजप्रताप यादव पहली बार उतरे हैं। दूसरी ओर जेडीयू के राजकुमार राय हैं। ये पिछले दो बार से लगतार जीत रहे हैं। 1967 के बाद से इस चुनाव क्षेत्र से दूसरी जाति का कोई उम्मीदवार नहीं जीत सका है। पहले पूर्व मंत्री गजेंद्र प्रसाद हिमांशु यहां से जीता करते थे। उन्होंने आरजेडी का प्रतिनिधित्व किया था।

मधेपुराः
मधेपुरा को प्रतिनिधित्व करनेवाले को गोप का पोप कहा जाता है। लोकसभा चुनाव में भी यहां से लालू यादव और शरद यादव का मुकाबला होता रहा है। पप्पू यादव ने भी इस सीट पर शरद यादव को कई बार चुनौती दी है। विधानसभा के लिए यहां से जेडीयू ने अपने प्रवक्ता एवं मंडल आयोग के मसीहा वीपी मंडल के पोते निखिल मंडल को उतारा है। उन्हें आरजेडी के चंद्रशेखर चुनौती दे रहे हैं।

परसाः पूर्व मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय के क्षेत्र परसा में जेडीयू ने लालू के समधी चंद्रिका राय को उतारा है। उनके सामने आरजेडी के छोटेलाल राय किस्मत आजमा रहे हैं। लालू परिवार से चंद्रिका राय के बिगड़े रिश्ते की चर्चा खूब हो चुकी है। इस बार हार-जीत की चर्चा होगी। दोनों यादव हैं और एक दूसरे के कट्टर प्रतिद्वंद्वी हैं। एक आरजेडी में होते हैं तो दूसरा जेडीयू में मोर्चा संभाल लेते हैं।

मनेरः आरजेडी के एक और बड़ा चेहरा हैं भाई वीरेंद्र। वे पार्टी के प्रवक्ता भी हैं और तेजस्वी के करीबी माने जाते हैं। मनेर से  वे 1995 से ही जीतते आ रहे हैं। इस बार बीजेपी ने अपने प्रवक्ता निखिल आनंद को उनके सामने उतारा है।

दानापुरः इस बार दानापुर की लड़ाई भी काफी दिलचस्प है। बीजेपी विधायक आशा सिन्हा के खिलाफ आरजेडी ने बाहुबली रीतलाल यादव को उतारा है।

भूमिहार बनाम भूमिहारः 13
विधानसभा की 13 सीटों पर दोनों ही गठबंधनों ने भूमिहार उम्मीदवारों को उतारकर चुनाव को काफी दिलचस्प बना दिया है। सबसे अहम लडाई मोकामा में आरजेडी और जेडीयू के बीच हैं। आरजेडी के बाहुबली नेता अनंत सिंह को टिकट देकर पार्टी ने इस सीट को बेहद खास बना दिया है। उनके सामने जेडीयू ने राजीव लोचन को अपना उम्मीदवार बनाया है। लखीसराय से मंत्री विजय कुमार से मुकाबले के लिए कांग्रेस ने अमरीश कुमार को मैदान में उतारा है। टिकारी से पूर्व मंत्री एवं हम के प्रत्याशी अनिल कुमार भी कांग्रेस के सुमंत कुमार के सामने हैं। दोनों में से कोई भी जीते भूमिहार जाति का ही प्रतिनिधित्व होगा।

राजपूत बना राजपूतः 06
जाति बनाम जाति की तीसरी लड़ाई राजपूतों में देखने को मिल रही है। छह सीटों पर राजपूत प्रत्याशी ही आमने-सामने हैं। बाढ़ में बीजेपी के ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू के सामने कांग्रेस ने सत्येंद्र बहादुर को सिंबल थमाकर मैदान में उतारा है। सबकी निगाहें रामगढ़ पर भी लगी हुई है, यहां से आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के पुत्र सुधाकर सिंह को उम्मीदवार बनाया गया है। बीजेपी ने यहां से अशोक सिंह को मैदान में उतारा है। इस सीट की चर्चा इसलिए भी अधिक है क्योंकि 2010 में सुधाकर यहां से बीजेपी के उम्मीदवार थे और उनके पिता जगदानंद सिंह ने बेटे को हराने के लिए आरजेडी का प्रचार किया था।

कायस्थ बनाम कायस्थः 02
दो सीटों पर कायस्थ बनाम कायस्थ का भी काफी दिलचस्प मुकाबला होगा। बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा के पुत्र लव सिन्हा की चुनौती बेजेपी विधायक नितिन नवीन से है। वो लव सिन्हा को कितनी चुनोती दे पाते हैं, यह तो वक्त ही बताएगा।

मुस्लिम बनाम मुस्लिमः04
सीमांचल की चार सीटों पर मुस्लिन बनाम मुस्लिम के बीच दिलचस्प मुकाबला होगा। पासवान प्रत्याशी भी पांच सीटों पर स्वजातीय प्रत्याशियों से ही टकराएंगे।

ब्राह्मण बनाम ब्राह्मणः 05
ब्राह्मणो का आपसी संघर्ष पांच सीटों पर होना है। कुचायकोट में जेडीयू के अमरेंद्र पांडेय और कांग्रेस के काली प्रसाद पांडे के बीच टक्कर होगी।

कुर्मी बनाम कुर्मीः 01
बिहार विधान सभा के इस चुनाव में सबसे कम सीटों पर आमने-सामने की टक्कर कुर्मी जाति में है। इनके बीच केवल एक सीट पर मुकाबला है। बाकी रविदास, मांझी और पासी के बीच तीन-तीन सीटों पर टक्कर है, जबकि कुशवाहा और वैश्य के प्रत्याशी दो-दो सीटों पर आमने -सामने हैं।

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