370 समाप्ति वर्षगांठ: पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का कारनामा, श्रीनगर में ‘तिरंगा’ फहराने से रोका

श्रीनगर पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को लेकर स्थानीय लोगों में असंतोष है। शंकराचार्य पहाड़ी पर स्थित शिव मंदिर में पूजा करने और तिरंगा फहराने की मांग पर भी प्रशासन को आपत्ति है।

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जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35ए समाप्त हो गया है लेकिन, इस्लामी सत्ता का असर ऐसा है कि मंदिर पर ‘तिरंगा’ फहराने के लिए भी अनुमति लेनी होती है। यह घटना है डल झील की पहाड़ी पर बसे शंकराचार्य मंदिर की। यहां पर सीआरपीएफ और स्थानीय लोग जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र बहाली की दूसरी वर्षगांठ पर तिरंगा रंगा गुब्बारा फहराना चाहते थे, परंतु उन्हें अनुमति के नाम पर रोक दिया गया।

5 अगस्त, 2021 का दिन जम्मू कश्मीर समेत पूरे राष्ट्र के लिए ऐतिहासिक दिन है। इस बार अनुच्छेद 370 और 35ए की समाप्ति की दूसरी वर्षगांठ है। जिसे पूरा देश मना रहा है। इस अवसर पर श्रीनगर के शंकराचार्य पहाड़ी पर स्थित भगवान शिव के मंदिर पर तिरंगे में रंगा गुब्बारा फहराने की योजना थी। परंतु, भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने इसे रोक दिया। यह योजना केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल और शंकराचार्य मंदिर ग्रुप के अंतर्गत ‘वन इंडिया, स्ट्रॉंग इंडिया’ के सदस्यों की थी। वे इस ऐतिहासिक दिन पर तिरंगे में रंगे गुब्बारे को शहर की सबसे ऊंची चोटी पर लहराना चाहते थे। परंतु, आरोप है कि इससे भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के अधिकारी फयाज को समस्या थी। उसने ऐसा करने से रोक दिया। इस विषय में इक्कजुट्ट जम्मू ने तीव्र विरोध दर्ज कराया है।

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भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग अब भी मुस्लिम ब्रदरहुड के मॉड्यूल के अनुरूप काम कर रहा है। श्रीनगर की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा फहराने या तिरंगे में रंगा गुब्बारा लगाने का अर्थ है कि उसे पूरा श्रीनगर देखेगा। लेकिन भारत सरकार अलगाववादियों और जिहादियों को नाराज नहीं करना चाहती है।
अंकुर शर्मा – अध्यक्ष, इक्कजुट्ट जम्मू

श्रीनगर के डल झील के पास राजा गोपादात्य द्वारा ईसा पूर्व 371 में शंकराचार्य पहाड़ी पर शिव मंदिर का निर्माण कराया गया है। यह कश्मीर की प्राचीनतम ऐतिहासिक धरोहर है। जब जम्मू कश्मीर में दो वर्ष पहले लोकतंत्र को कमजोर करनेवाले अनुच्छेद 370 और 35ए को समाप्त किया गया तो उसका हर्ष पूरे देश को और प्रत्येक भारतीय को हुआ। लेकिन, पिछली शताब्दि में कश्मीर पर हावी हुए इस्लामी आक्रांताओं की मानसिकता ने यहां से तिरंगा, हिंदू मंदिर और हिंदू धर्म पर जो गहरा प्रहार किया था उसके अवशेष अब भी दिखते हैं।

यह दु:खद है, हम 5 अगस्त के ऐतिहासिक दिन पर तिरंगा फहराकर अपनी खुशी व्यक्त करना चाहते हैं। परंतु, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग इसके लिए पहले अनुमति लेने की बात कह रहा है। हम अपने देश में तिरंगे में रंगा गुब्बारा भी नहीं पहरा सकते, जबकि इसके लिए कोई निर्माण या मंदिर की संपत्ति को कोई हानि होने की आवश्यकता भी नहीं है।
सदस्य – वन इंडिया, स्ट्रॉंग इंडिया

इस बारे में पुरातत्व विभाग के अधिकारी विनोद रावत से हिंदुस्थान पोस्ट ने बात की तो उनका उत्तर कुछ इस प्रकार था।

सेना ने वहां सौ मीटर के बाहर तिरंगे वाला गुब्बारा फहरा दिया है। यह नेशनल मॉन्यूमेन्ट अथॉरिटी के अंतर्गत आता है। यदि वे अनुमति देते हैं तो हमें कोई आपत्ति नहीं है। पुरातात्विक महत्व के स्थानों पर निर्माण की अनुमति नहीं है। झंडा फहराने के लिए निर्माण करना होता है इसके लिए अनुमति लेनी चाहिए, गुब्बारा फहराने के लिए हमने मंदिर परिसर के सौ मीटर के बाहर कहा था।
विनोद रावत – भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, जम्मू

श्रीनगर के लाल चौक में 26 जनवरी 1992 को भारतीय जनता पार्टी के नेता मुरली मनोहर जोशी और नरेंद्र मोदी ने तिरंगा झंडा फहराया था। उस घटना को 29 वर्ष हो गए अब केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार है। इस सरकार ने ही 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर को अनुच्छेद 370 और 35 ए की दासता से मुक्ति दिलाई थी। परंतु, तिरंगा फहराने के लिए कानूनी डंडा दिखाकर आपत्तिवाले जतानेवाले अधिकारी अब भी प्रशासन में मौजूद हैं। जिनके लिए भी पत्थरबाज और आतंकी गतिविधि में शामिल लोगों की भांति कानून लाने की आवश्यकता स्थानीय लोगों ने व्यक्त की है।

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