स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्याध्यक्ष और वीर सावरकर के पोते रणजीत सावरकर ने गांधी को राष्ट्रपिता के रूप में संबोधित करने से इनकार किया। उन्होंने कहा कि अगर आप प्रभु रामचंद्र को राष्ट्रपिता नहीं मानते तो महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कैसे मान सकते हैं? जो किसी देश को जन्म देता है, वह राष्ट्र का पिता होता है। गांधी ने 1930 से आजादी की मांग की थी। 1930 का आंदोलन समाप्त होने पर भगत सिंह को बचाया नहीं जा सका। जब 1942 का आन्दोलन 5 दिनों में समाप्त हुआ, क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने मार डाला। गांधी ने विरोध का एक शब्द नहीं बोला। 1942 के बाद सीधा 1947 में आंदोलन शुरू हुआ, भारत का बंटवारा हुआ। इसमें 20 लाख लोग मारे गए। आपनी स्वतंत्रता मिलने से 11 महीने पहले ही देश का बंटवारा कर दिया था। पैदा हुई समस्याओं का सामना करने के लिए देश तैयार नहीं था। सत्ता के लालच में 20 लाख लोग मारे गए।
रणजीत सावरकर ने शनिवार, 26 नवंबर को हिंदी समाचार चैनल एबीपी न्यूज पर एक कार्यक्रम में भाग लिया। उस समय उन्होंने चैनल के संपादकीय बोर्ड द्वारा पूछे गए सवालों के विस्तृत जवाब दिए।
सवाल: राहुल गांधी ने सावरकर पर माफी मांगने का आरोप लगाया, इस पर क्या कहना है?
रणजीत सावरकर: फरवरी 1942 में महात्मा गांधी से एक मूर्ख ने पूछा कि आप अंग्रेजों को लिखे अपने पत्र में ‘मोस्ट ओबेडियंट सर्वेंट’ क्यों लिखते हैं? गांधी ने तब उत्तर दिया, वे मेरे विरोधी हैं, लेकिन यह मेरी विनम्र भाषा है, मैं पत्र लिखते समय इसे छोड़ना नहीं चाहता। गांधी द्वारा दिया गया उत्तर राहुल गांधी के प्रश्न का सटीक उत्तर है।
प्रश्न: क्या गांधी के कहने पर वीर सावरकर ने क्षमा के लिए आवेदन किया था?
रणजीत सावरकर : यह कहना सही नहीं है कि गांधी के कहने के बाद सावरकर ने माफी मांगी, जब सभी कैदी आवेदन करते थे, तो यह नहीं कहा जा सकता कि केवल वीर सावरकर ने माफी मांगी। उन्होंने जो आवेदन किया था और वह अपने लिए नहीं, अपने साथियों के लिए किया था। हमारे पास वह पत्र भी है। गांधी ने सावरकर के छोटे भाई से कहा था कि ‘वीर सावरकर याचिका दायर करें’। गांधी ने भी ऐसी याचिका का समर्थन किया था। यह एक याचिका है, माफी नहीं। हम कोर्ट जाते हैं और गुहार लगाते हैं।
प्रश्न: सावरकर ने अपने आवेदन में क्लेमेंसी शब्द का उल्लेख किया है?
रणजीत सावरकर: 1911 में जब अंग्रेजों ने एक नया अधिकारी नियुक्त किया, तो उन्होंने सभी कैदियों को रिहा करने का फैसला किया। 13 मई 1913 को सावरकर ने अपना पहला आवेदन दिया, उन्होंने रिहाई के लिए आवेदन नहीं किया, लेकिन तब अंडमान जेल का नियम था कि केवल 6 महीनों तक कैद में रखते थे और फिर छोड़ देते थे, जबकि क्रांतिकारियों को 3 साल तक रिहा नहीं किया जाता था। इसलिए सावरकर ने एक याचिका दायर की थी। 1911 में उन्होंने 2 लाइन का एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने रिहाई का जिक्र किया, जिसके बदले में उन्होंने क्लेमेंसी शब्द का उल्लेख किया। उन्होंने कहा क वे राजनीति में भाग नहीं लेंगे, लेकिन वीर सावरकर हमेशा कहते थे कि दुश्मन से किए गए वादे तोड़ने के लिए होते हैं। वीर सावरकर व्यावहारिक, कृष्ण नीति के अनुयायी थे।
प्रश्न: सावरकर और संघ में मतभेद क्यों था?
रणजीत सावरकर : वीर सावरकर ने रत्नागिरी में हिंदू महासभा की स्थापना की, वे पहले से हिंदू महासभा के साथ थे। संघ हिंदू महासभा का हिस्सा था, हेगड़ेवार नागपुर हिंदू महासभा के अध्यक्ष थे। बाद में गोलवलकर गुरुजी और वीर सावरकर में धर्म के आधार पर मतभेद हो गया। वीर सावरकर व्यक्तिगत स्तर पर ईश्वर में विश्वास नहीं करते थे। वे परंपराओं की बात करते थे, लेकिन गोलवलकर गुरुजी के विचार चतुरवर्ण के थे, गांधी भी चतुरवर्ण को मानते थे। तो, वास्तव में, यह पूछा जाना चाहिए कि गांधी गोलवलकर गुरुजी को अपने साथ क्यों नहीं ले गए? गांधी के विचार बहुत विकृत थे, वे कहते थे कि हर कोई अपनी पसंद के अनुसार शिक्षा प्राप्त कर सकता है, अर्थात एक ब्राह्मण सैन्य शिक्षा प्राप्त कर सकता है, एक अस्पृश्य चिकित्सा शिक्षा प्राप्त कर सकता है, लेकिन उन्हें पीढ़ी-दर-पीढ़ी व्यापार करना पड़ता है। गांधी ने कहा कि भंगी समाज का बेटा भले ही डॉक्टर बन जाए, लेकिन पेट भरने के लिए उसे शौचालय साफ करना पड़ता है। आम्बेडकर ने स्वयं ये बात कही है।
प्रश्न: आप नेहरू पर आरोप क्यों लगाते हैं?
रणजीत सावरकर: राहुल गांधी जो आरोप लगा रहे हैं, वे झूठे हैं। मैंने नेहरू के बारे में जो कहा है, नेहरू और लेडी माउंटबेटन के व्यक्तिगत संबंधों के बारे में मुझे कुछ नहीं कहना है। आप भारतीय सेना अधिनियम को देखें, इसमें कहा गया है ‘यदि कोई अधिकारी किसी शत्रु महिला से मित्रता करता है, तो यह देश-विरोधी कार्य है। लेडी माउंटबेटन की बेटी ने लिखा है कि जब नेहरू प्रधानमंत्री थे, तब वे हर दिन लेडी माउंटबेटन को पत्र लिखा करते थे, जिसमें पहला और आखिरी पैराग्राफ व्यक्तिगत होता था और बीच में उनकी दैनिक डायरी होती थी। यह जानकारी आधिकारिक रिकार्ड में है, ये पत्र आज भी ब्रिटेन में हैं। यह देशद्रोह है। एक प्रधानमंत्री हनी ट्रैप में फंसकर 12 साल तक चिट्ठी लिखता रहा। माउंटबेटन अंत तक ब्रिटेन के सम्राट थे। नेहरू के व्यक्तिगत संबंधों के कारण ही माउंटबेटन को भारत का पहला गवर्नर नियुक्त किया गया था। तो परिणाम खराब रहे। क्योंकि माउंटबेटन ने तय किया कि भारतीय सेना पाकिस्तान की सेना के सामने नहीं टिकेगी। इसलिए भले ही 20 हजार महिलाओं का अपहरण हुआ हो, लेकिन रक्षा मंत्री बलदेव सिंह भारतीय सेना का इस्तेमाल नहीं कर पाए। बलदेव सिंह ने इस संबंध में वल्लभ भाई पटेल को पत्र लिखा है, इसकी प्रति हमारे पास है। उस पत्र में बलदेव सिंह यह भी लिखते हैं कि उन्हें गोलवलकर गुरुजी से बात करनी चाहिए और मदद के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की इकाइयों को भेजना चाहिए, लेकिन कुछ नहीं हुआ।
प्रश्न: अब आप राहुल गांधी की आलोचना का जवाब क्यों दे रहे हैं?
रणजीत सावरकर – राहुल गांधी कई बार आरोप लगा चुके हैं। मैं उनको जवाब देता रहा हूं, लेकिन इस बार मैंने तय किया कि मैं भी सवाल पूछूंगा। मैं स्वयं एक शोधार्थी हूं। वीर सावरकर को 20 वर्षों से बदनाम किया जा रहा है।