सवा महीना गुजर जाने पर भी मात्र कागजों पर है ऑक्सीजन प्लांट! क्या यही है मुंबई पैटर्न?

कोरोना की दूसरी लहर से पूरे देश के साथ मुंबई भी तबाह हुई है और यहां भी ऑक्सीजन, रेमडेसिविर और अन्य जीवन रक्षक दवाओं की कमी महसूस की गई थी। इसी को देखते हुए बीएममसी ने महानगर में 16-17 ऑक्सीजन प्लांट लगाने का निर्णय लिया था।

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मुंबई में मार्च-अप्रैल में कोरोना की दूसरी लहर जब चरम पर थी तो मुंबई महानगरपालिका के 12 अस्पतालों में से 16-17 ऑक्सीजन प्लांट लगाने का निर्णय लिया गया था। इस काम को युद्ध स्तर पूरा करने की योजना बनाई गई थी। इसलिए इसके लिए छह महीनों की समय सीमा की छोटी निविदाएं निकाली गई थीं। लेकिन यह निर्णय लेने के बाद मई के साथ ही जून का भी पहला सप्ताह निकल गया है। लेकिन ऑक्सीजन प्लांट लगाने की दिशा में एक इंच भी आगे नहीं बढ़ा जा सका है। इससे सवाल उठता है कि क्या इस मामले में प्रशासन वाकई गंभीर है।

दूसरी लहर के समय लिया गया था निर्णय
बता दें कि कोरोना की दूसरी लहर से पूरे देश के साथ मुंबई भी तबाह हुई है और यहां भी ऑक्सीजन, रेमडेसिविर और अन्य जीवन रक्षक दवाओं की कमी महसूस की गई थी। इसी को देखते हुए बीएममसी ने युद्ध स्तर पर महानगर में 16-17 ऑक्सीजन प्लांट लगाने का निर्णय लिया था। अब दूसरी लहर तो गुजर गई लेकिन तीसरी लहर का खतरा बना हुआ है। कम से कम इन ऑक्सीजन प्लांट से तीसरी लहर में तो लाभ हो सकता है। लेकिन इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाए जाने से ऐसा लगता है कि प्रशासन केवल ठेकेदारों की जेब भरने का काम कर रहा है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या यही मुंबई पैटर्न है, जिसकी प्रशंसा देश के न्यायालयों ने भी की थी।

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वातावरण से उत्पन्न की जाएगी आक्सीजन
कोविड-19 के मरीजों की संख्या में वृद्धि होने पर ऑक्सीजन की आपूर्ति में भारी दिक्कतें होती हैं। इसलिए बीएमसी प्रशासन ने स्थाई समाधान के तौर पर 12 अस्पतालों में 16-17 ऑक्सीजन प्लांट लगाने का फैसला किया था। इसमें वातावरण में व्याप्त हवा से ऑक्सीजन का उत्पादन कर मरीजों को इसकी आपूर्ति की जाएगी। इन परियोजनाओं में से प्रतिदिन कुल 43 मीट्रिक टन ऑक्सीजन उत्पन्न करने के लिए मई के पहले सप्ताह में निविदा निकाली गई थी। प्रशासनिक अधिकारियों ने प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए छह दिनों की समय सीमा तय की थी। इसके साथ ही अगले 15 मई से पहले यह प्रक्रिया पूरी करनी थी और कार्यादेश जारी करना था लेकिन इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई है। इसका कारण यह है कि प्रशासन अभी भी बातचीत में अपना समय बर्बाद कर रहा है।

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प्रशासन गंभीर नहीं
इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए पात्र एकमात्र कंपनी है, जिसका प्रस्ताव तत्काल अनुमोदन के लिए भेजा जाना है और प्रोजेक्ट को एक महीने के भीतर लगाया जाना है। लेकिन प्रशासन बातचीत के नाम पर समय बर्बाद कर रहा है। शायद वह यह जुगाड़ भिड़ाने की कोशिश कर रहा है कि ठेकेदार के लिए और समय कैसे निकाला जाए। प्राप्त जानकारी के अनुसार स्थाई समिति में पात्र कंपनी के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद उसे कार्यादेश जारी कर दिया जाएगा। लेकिन जिस तरह से प्रशासन इसमें देरी कर रहा है, उससे पता चलता है कि ऑक्सीजन प्रोजेक्ट के नाम पर यहां कुछ और ही चल रहा है।

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