रासायनिक खाद का कुप्रभाव, हजारों एकड़ जमीन में नहीं उपज पा रही है प्याज!

बढ़ती जनसंख्या का पेट भरने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नो केमिकल यानी जैविक खेती को बढ़ावा देने के कई प्रयास किए हैं।

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बढ़ती जनसंख्या का पेट भरने के लिए 1960 के दशक में अधिक अन्न उपजाने के लिए तत्कालीन केन्द्र सरकार ने विदेशों से रासायनिक खाद आयात कर किसानों को इसके लिए प्रेरित किया था लेकिन अब वही खाद जानलेवा साबित हो जा रहा है, जिसके कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नो केमिकल यानी जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए हैं लेकिन इन सारी कवायद के बाद भी पड़ोसी राज्यों तक में प्याज उत्पादन के लिए चर्चित बेगूसराय के सांख गांव में रासायनिक खाद और दवा ने कहर बरपा दिया है।

अब लागत निकालना भी मुश्किल
चार-पांच साल पहले सांख में हजारों एकड़ में प्याज की खेती होती थी, प्याज तैयार होने से पहले ही व्यापारी आकर एडवांस में सौदा तय कर लेते थे लेकिन, रासायनिक खाद के कुप्रभाव से जमीन की उर्वरा शक्ति पूरी तरह से समाप्त हो गई है तो प्याज की उपज धीरे-धीरे बंद हो गया। पिछले तीन-चार वर्षों से जब प्याज की खेती से लागत भी निकलना मुश्किल हो गया तो किसानों ने धीरे-धीरे प्याज की खेती करना छोड़ दिया। हालत यह है कि हजारों एकड़ में प्याज उत्पादन करने वाले सांख गांव में इस वर्ष 25-50 एकड़ में भी प्याज की खेती नहीं हो सकी। हालांकि सुखद पहलू यह है कि यहां के किसान हरी सब्जी उत्पादन में नई गाथा लिख रहे हैं। सांख में उपजाई गई ताजी सब्जी ना केवल बेगूसराय के बाजार में मिलती है, जबकि बल्कि पड़ोसी जिला समस्तीपुर, खगड़िया, लखीसराय से सहरसा, कटिहार और मुंगेर तक जाती है।

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अच्छी उपज के लिए रासायनिक खाद और दवा का प्रयोग
यहां सब्जी मंडी सुबह पांच बजे से शुरू हो जाती है तथा दूर-दूर के व्यापारी यहां से ताजी सब्जियां खरीद कर ले जाते हैं। सब्जी उत्पादन में अच्छा बचत होने से गांव के सभी किसान पारंपरिक खेती छोड़ कर सिर्फ सब्जी ही नहीं, सब्जी की अंतरवर्ती खेती करते हैं। लेकिन अभी भी सब्जी का उत्पादन भी रासायनिक खाद और दवा के भरोसे होता है। किसानों का कहना है कि पारंपरिक खेती में बचत नहीं होता था, जिसके कारण हम लोग प्याज की ओर रुख किए, प्याज के बाद अब सभी प्रकार के हरी सब्जी का उत्पादन कर रहे हैं। खेती से अच्छी उपज के लिए रासायनिक खाद और दवा का प्रयोग करना मजबूरी है, अगर दवा का प्रयोग नहीं करेंगे तो सब्जी का बेहतर उत्पादन नहीं होगा।

बेगूसराय जैविक कॉरिडोर में शामिल
किसान रामप्रताप महतो, सोनेलाल, विवेक कुमार, विकास कुमार आदि ने बताया कि 60 साल पहले खेत में रासायनिक खाद-दवा का प्रयोग नहीं होता था।जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई तो बढ़ती हुई जनसंख्या का पेट भरने के लिए सरकार उर्वरक के प्रयोग को बढ़ावा देने लगी। विदेश से मंगाए गए खाद हजारों वर्षों से जमीन में दबे उर्वरा शक्ति को तुरंत पौधे को पहुंचाने लगे। अधिक उपज होने के कारण पेट तो भर गया, लेकिन रासायनिक खाद और दवा के अत्यधिक उपयोग से जमीन की उर्वरा शक्ति समाप्त हो गई। किसानों का कहना है कि बेगूसराय को जैविक कॉरिडोर में शामिल किया गया है, सब्जी उत्पादन के लिए चर्चित हमारे गांव में जैविक खेती के प्रति लोगों को जागरूक कर जैविक खाद उपलब्ध हो जाए तो सांख जैविक सब्जी उत्पादन में नया अध्याय लिखेगा।

हर तरीके से मदद करने के लिए तैयार
स्थानीय सांसद और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने बताया कि बेगूसराय में सब्जी उत्पादन के लिए प्रसिद्ध सांख गांव में प्राकृतिक खेती के पीएम के आह्वान को आगे बढ़ाते हुए सब्जी उत्पादकों के बीच ग्रीन फर्टिलाइजर बनाने की विधियों का प्रदर्शन किया गया, जिसमें जीविका समूह की बहनों द्वारा आम किसानों के बीच खाद बनाने का तरीका दिखाया गया है, उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। हम वहां के किसानों की हर तरीके से मदद करने के लिए तैयार हैं। सब्जी उत्पादक किसानों के लिए सांख में करीब साढ़े 14 लाख की लागत से शेड बनाने की अनुशंसा की गई है। जैविक खेती से जमीन में नाइट्रोजन फिक्स होती है, वायुमंडल से जब जमीन में नाइट्रोजन फिक्स होगा तो जमीन की उर्वरा शक्ति फिर तैयार होगा और बगैर रासायनिक खाद के भी फसल हो सकेगा। सभी किसान प्रधानमंत्री के इस मंत्र को आत्मसात कर जैविक खेती करें आधे से भी कम खर्च में बेहतरीन आय होगी तो किसानों की आर्थिक प्रगति का द्वार खुल जाएगा।

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