मुंबई को सपनों की नगरी कहा जाता है। देश के कोने-कोने से लोग यहां अपने सपने पूरा करने आते हैं। सपने कुछ भी हो सकते हैं। किसी को भी फिल्मों में काम करने का सपना होता है, तो किसी को बड़ा व्यवसाय करने का सपना होता है तो किसी का सपना अपनी रोजीरोटी का जुगाड़ करना भर होता है। यहां का बॉलीवुड देश-विदेश के लोगों के लिए बड़ा आकर्षण है, लेकिन बड़े लोगों की बड़ी बात। कोरोना काल में भले ही उनकी आय पर असर पड़ा हो, फिर भी उनकी जिंदगी मजे में गुजर रही है। समस्या तो उन लोगों के लिए है, जो रोज कमाते हैं और रोज खाते हैं। ऐसे लोगों के सामने जिंदगी का एक-एक दिन पहाड़ हो गया है।
ऐसी है मुंबई
आज तो दिन गुजर गया, कल का पता नहीं। जिनकी जिंदगी में ऐसी अनिश्चितता पहले से ही है, उनका इस कोरोना काल में क्या हाल हो सकता है, इसका अंदाजा लगाना कठिन नहीं है। ऐसे लोगों में ज्यादातर यूपी-बिहार के लोग इस मायनगरी में हैं। सालों तक मां की तरह प्यार देने वाली इस मायानगरी को छोड़ना किसी के लिए भी आसान नहीं है। मुबंई जो आता है, उसे इस नगरी से प्यार हो जाता है और ये मुंबई भी ऐसी ही है जो अपनी बाहें फैलाए अपने पास हर आने वाले को गले लगाने के लिए उत्साहित रहती है। भले ही शुरू में कुछ झटके खाने पड़ें, लेकिन धीरे-धीरे जिंदगी पटरी पर आ जाती है और जिंदगी के साथ ही ये मुंबई भी प्यारी लगने लगती है। लेकिन कोरोना ने सब उलट-पलट कर रख दिया है। रोजी-रोटी बंद और कोरोना की भेंट चढ़ने का खतरा अलग।
मुंबई में कोरोना का खतरा ज्यादा
पहली लहर हो या दूसरी लहर, सबसे ज्यादा कोरोना के मरीज मुंबई में ही मिले हैं। इसके चलते कई लोगों ने मुंबई को छोड़कर अपना गांव जाना पसंद किया।ऐसे लोगों में यूपी- बिहार के लोग अधिक हैं।
यूपी-बिहार के हैं ज्यादातर ऑटो-रिक्शा चालक
मुंबई की सड़कों पर चलने वाले ज्यादातर रिक्शा और टैक्सियां यूपी और बिहार के लोग ही चलाते हैं। लेकिन जैसे ही मुंबई में कोरोना संकट आया, अधिकांश लोगों ने अपने गृहनगर लौटने का फैसला किया। यहां के कई रिक्शा और टैक्सी चालकों का कहना है कि पिछले काफी दिनों से लगभग 80 प्रतिशत रिक्शा और टैक्सी चालक गांव में है। मुंबई में जब तक स्थिति सामान्य नहीं हो जाती, तब तक वे गांव में ही रहेंगे। वैसे भी, मुंबई में रहने वाले टैक्सी-रिक्शा चालकों का कारोबार भी काफी मंदा हो गया है।
ये भी बड़ा कारण
मुंबई बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करती है। लेकिन कोरोना संकट के कारण स्थानीय प्रशासन द्वारा बार-बार लगाई गई पाबंदियों का उन पर काफी बुरा असर पड़ा है। पर्यटकों की कमी के कारण यहां के रिक्शा-टैक्सी चालकों की कमाई काफी कम हो गई है। इस स्थिति में अब अगर मुंबई में कोई काम नहीं है, तो यहां बैठकर कोई क्या करेगा। इसलिए बहुत से लोगों ने गांव जाने और वहीं रहने का निर्णय लिया। समस्या यह भी है कि मुंबई सबसे ज्यादा खर्चीला शहर है, और अगर हाथ में काम नहीं है तो दैनिक खर्चों को कैसे पूरा किया जाए, यह बड़ा सवाल है।
नहीं दे पा रहे किराया
कई परप्रांतीय दुकान या टैक्सी- रिक्शा किराए पर लेकर अपना कारोबार करते हैं। लेकिन, लॉकडाउन के कारण, सभी व्यवसाय ठप हो गए हैं। इस स्थिति में वे किराए का भुगतान भीनहीं कर सकते हैं, इसलिए उन्होंने अपने गांव का रुख कर लिया। कुछ लोगों ने अपना पूरा परिवार गांव में ही छोड़ दिया है और खुद मुंबई में छोटा-मोटा काम कर किसी तरह दिन काट रहे हैं।
‘अभी तो गांव में रहूंगा’
विनय दुबे ऑटो रिक्शा चलाकर वर्षो से मुंबई में अपना और अपने परिवार का जीवन चलाते थे। वे फिलहाल अपने गांव में रह रहे हैं। दुबे बताते हैं, ‘मैं पिछले 10 साल से किराए का रिक्शा चला रहा हूं। लेकिन पिछले साल के लॉकडाउन के बाद से अपने गृहनगर में हूं। स्थिति सामान्य होने तक गांव में ही रहूंगा।’
‘आकर भी क्या करेंगे’
कोरोना काल में अपनी नौकरी गंवा चुके मिश्रा भी काफी दिनों से अपने गांव में रहे हैं। वे बताते हैं,’मैं पिछले एक साल से गांव में हूं। यहां कोई काम नहीं है। इसलिए हम तो जल्दी मुंबई आना चाहते हैं, लेकिन वहां भी काम बंद है और कोरोना का भी खतरा ज्यादा है। इसलिए सोचता हूं कि वहां आकर भी क्या करूंगा?’