महिला दिवस: `हम केवल जननी नहीं, पालक व संचालक भी’

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर कुछ विशेष महिलाओं से बातचीत में सामने आया कैसे विकास की सीढ़ी में महिलाएं महत्वूर्ण भूमिका निभा रही हैं।

पूरी दुनिया में आठ मार्च अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज समुद्र की लहरों पर राज करने से लेकर आसमान का सीना चीर फाइटर प्लेन उड़ाने तक, गणित के जटिल रहस्यों के उद्भेदन से लेकर अंतरिक्ष विज्ञान तक में अपना परचम लहराने वाली महिलाएं न केवल अपने परिवार का सहारा बनकर पालनहार बनी हैं। बल्कि विश्व पटल पर रोज नई उपलब्धियों की दास्तान लिख रही हैं। इसी कड़ी में हिन्दुस्थान समाचार ने बात की कुछ ऐसी सबलाओं से जिन्होंने तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद अपना मकाम सबसे ऊंचा हासिल किया।

अरुंधती घोष, पूर्वी क्षेत्र की पूर्व महानिदेशक- पोस्टल विभाग:
आप विशेष बातचीत में कहती हैं, “भारत के सतत विकास में महिलाओं की भागीदारी फिलहाल बहुत अधिक नहीं दिख रही। पिछले कई दशकों से देश का आर्थिक विकास काफी तेजी से हुआ है। लिंग अनुपात भी घटा है। लड़कियों की शिक्षा दीक्षा के लिए भी बड़े पैमाने पर काम किए गए हैं लेकिन महिलाओं की सामाजिक भागीदारी फिलहाल अपर्याप्त है। उन्होंने दावा किया कि सार्वजनिक कार्य क्षेत्र में अगर महिलाओं की भागीदारी बराबर होगी तो हमारे देश की जीडीपी 2025 तक 60 फ़ीसदी बढ़ सकती है।

शाश्वति आचार्य संयोजिका, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ सेरिब्रल पॉलिसी: शाश्वति कहती हैं कि, लोग कहते हैं महिला के गुणों से संसार में सुख आता है लेकिन महिला को किन बातों से सुख मिलेगा इसकी खबर किसे रहती है? हकीकत यही है कि महिलाएं सबको सुखी रखने के लिए अपना सबकुछ कुर्बान कर रही हैं। समाज को यह सोच बदलने की जरूरत है। बेटियों को सभी सुख-सुविधाएं मिले और वह भी जीवन के हर मुकाम पर बेरोकटोक आगे बढ़ें, इसके लिए माहौल बनाना होगा।

डॉक्टर राजलक्ष्मी बसु: राजलक्ष्मी कहती हैं कि आज महिलाएं एक दायरे के अंदर सीमित मानी जाती हैं। लेकिन यह तय है कि उन्हें किसी भी सीमित दायरे में समेट कर नहीं रखा जा सकता। उन्होंने कहा कि पुरुष और महिला समाज जिम्मेदारी और परस्पर सम्मान के साथ चले तभी समग्र विकसित समाज का निर्माण होगा।

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प्रहेली धर चौधरी, लेखिका और शोधार्थी: आप कहती हैं, “केवल महिलाएं ही हैं जो घर के अंदर और घर के बाहर भी हर काम को पूरी तन्मयता और बेहतरी के साथ कर सकती हैं। उन्हें और अधिक मौके दिए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि ऐसा एक चलन बन गया है कि घर के काम महिलाएं करेंगी और बाहर का पुरुष। इसे तोड़ने की जरूरत है। हर वो काम जो पुरुष कर सकते हैं, वह महिलाएं बखूबी करने में सक्षम हैं। हमें इस अंतर को मिटाना होगा तभी समग्र विकास का लक्ष्य हासिल होगा।

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