जानिये, देश में ‘कड़कनाथ’ की क्यों बढ़ रही है मांग!

सर्दी के दिनों में कड़कनाथ की डिमांड खूब बढ़ जाती है। इसे देखते हुए भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने पिछले साल से रांची में इसकी फार्मिंग शुरू की है।

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विश्व में दो तरह के लोग होते हैं। एक मांसाहारी और दूसरे शाकाहारी। मांसाहारी वे होते हैं, जिनको चिकन, मटन खाना पसंद होता है, जबकि शाकाहारी लोग केवल साग-सब्जी खाना पसंद करते हैं। देश में सामान्य मुर्गे का मांस तो मांसाहार करने वाले ज्यादातर लोग खाए होंगे, लेकिन अब कड़कनाथ मुर्गे का मांस भी काफी मशहूर हो रहा है। देश के कई पांच सितारा होटलों से लेकर छोटे से ढाबे में अब इस प्रजाति के मुर्गे का मांस परोसा जाने लगा है। लेकिन मुर्गे की प्रजाति कड़कनाथ के बारे में आज भी लोगों को पूरी जानकारी नहीं है।

झाबुआ रिसर्च सेंटर का दावा
मध्य प्रदेश के झाबुआ कड़कनाथ रिसर्च सेंटर और कृषि केंद्र ने भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद को पत्र लिखा है। पत्र में रिसर्च सेंटर की ओर से सुझाव दिया गया है कि कोरोना से बचाव के लिए अच्छी इम्यूनिटी की जरुरत होती है। इसके लिए कड़कनाथ का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इसके डायरेक्टर आईएस तोमर का मानना है कि कड़कनाथ मुर्गे के मीट और अंडे खाने से इम्यूनिटी को बढ़ाया जा सकता है तथा पोस्ट कोविड मामलों में इसके बेहतर परिणाम हो सकते हैं। दावा किया गया है कि इसमें हाई प्रोटीन, विटामिन, जिंक और लो फैट पाया जाता है। इसके साथ ही यह कोलस्ट्रॉल फ्री भी है। इसलिए इसे डाइट प्रोटोकॉल में शामिल किया जाना चाहिए, जिससे इम्यूनिटी बेहतर हो सकती है।

दरअस्ल कड़कनाथ मुर्गे की एक खास प्रजाति है। इस प्रजाति का मुर्गा केवल भारत में पाया जाता है। कई खास कारणों से पिछले कुछ सालों में इसकी मांग बढ़ी है। वैसे तो अब यह देश के कई भागों में पाया जाता है लेकिन मूल रुप से ये मुर्गा मध्य प्रदेश के झाबुआ में पाया जाता है।

कड़कनाथ की खास बातें

  • सामान्य मुर्गे की अपेक्षा यह महंगा होता है और बाजार में इसकी कीमत 900 से लेकर 1500 रुपए प्रति किलो तक होती है।
  • मुर्गे की इस प्रजाति का मांस और हड्डियां दोनों का ही रंग सामान्य मुर्गे से अलग होता है, जबकि इसका वजन डेढ़ से दो किलो तक होता है।
  • कड़कनाथ मुर्गे की एक खास प्रजाति है, जो काले रंग की होती है।
  • सामान्य मुर्गे की अपेक्षा यह काफी पौष्टिक और औषधीय गुणों से भरपूर तथा स्वादिष्ट होती है।
  • सामान्य मुर्गे में प्रोटीन की मात्रा लगभग 18-20 प्रतिशत तक होती है, वहीं कड़कनाथ में 25-30 प्रतिशत तक प्रोटीन पाया जाता है।

तीन प्रजातियां
कड़कनाथ मुर्गे की तीन प्रजातियां होती हैं। इनमें जेट ब्लैक, गोल्ड ब्लैक और पेसिल्ड ब्लैक शामिल हैं। कई वर्ष पहले तक कड़कनाथ मध्य प्रदेश के झाबुआ और छत्तीसगढ़ के बस्तर में रहने वाले आदिवासी समुदाय के लोग इन्हें पालते थे। वहां दिवाली के बाद देवी के सामने कड़कनाथ की बलि देने की पुरानी प्रथा है।

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सर्दी में बढ़ जाती है मांग, कोरोना में भी फायदेमंद
सर्दी के दिनों में कड़कनाथ की डिमांड खूब बढ़ जाती है। इसे देखते हुए भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने पिछले साल से रांची में इसकी फार्मिंग शुरू की है। उन्होंने इसके 200 चूजे एमपी से मंगवाए थे। बताया यह भी जाता है कि इसे खाने से कोरोना संक्रमण का खतरा काफी कम हो जाता है, हालांकि डब्ल्यूएचओ समेत देश के किसी विशेषज्ञ ने इसकी पुष्टि नहीं की है। सर्दी में इसकी मांग बढ़ने का कारण इसके खाने से शरीर को गर्म रहना बताया जाता है।

रंग के साथ मांस भी काला
इसके पंख, नाखून, मांस, खून,हड्डियां सब काले रंग के होते हैं। इसे कालीमासी के नाम से भी जाना जाता है। सरकार इसकी फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिए लोगों को प्रोत्साहित कर रही है। इसकी फार्मिंग के लिए जहां आसानी से कर्ज उपलब्ध कराए जा रहे हैं, वहीं मध्य प्रदेश में सहकारी समिति के माध्यम से भी इसकी फार्मिंग कराई जा रही है। इसमें प्रतिरोधक क्षमता सामान्य मुर्गे के मुकाबले काफी अधिक होती है। मध्य प्रदेश के पशुपालन अधिकारी का कहना है कि इसके खाने से हृदय और श्वास रोगों में विशेष रुप से फायदा होता है।

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