उदीयमान सूर्य की पूजा विश्व भर में की जाती है, परंतु अस्ताचल सूर्य का पूजन बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के एक बड़े क्षेत्र में ही होता है। सूर्य मानव सभ्यता और जीवों के प्रतिपालक हैं, इसलिए उनके महत्व के दृष्टिगत छठ पूजा की जाती है। जिसमें छठ के व्रती तीन दिनों तक उपवास कड़े नियमों का पालन करके अपने परिवार, समाज की प्रगति के लिए प्रार्थना करते हैं।
दीपावली के सातवें दिन की जानेवाली छठ पूजा से सभी अवगत हैं, परंतु, चैत्र नवरात्रि के पर्व में होनेवाली छठ पूजा उतनी प्रचलित नहीं है। लेकिन इसका भी महत्व उत्तर भारत के लिए कम नहीं है। चैत्र के नवरात्रि के चौथे दिन से यह पूजा शुरू हो गई है। अब छठवें दिन सूर्य को अर्घ्य के साथ यह लोकआस्था का ये महापर्व संपन्न होगा।
कोरोना संक्रमण से पिछले दो वर्षों तक बंदिश में मनाई जा रही छठ पूजा इस बार प्रतिबंध रहित संपन्न होगी। नहाय खाय के साथ 5 अप्रैल से यह चैती छठ की शुरुआत हो गई है। 6 अप्रैल को खरना होगा, 7 अप्रैल को शाम का अर्घ्य और 8 अप्रैल को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही महापर्व संपन्न हो जाएगा।
साल में दो बार छठ पूजा का महापर्व
हिन्दू पंचांग के अनुसार साल में दो बार छठ का महापर्व मनाया जाता है। एक कार्तिक मास में पड़ने वाली और दूसरी चैत्र मास में। चैती छठ पूजा के नियम और पूजा विधि भी कार्तिक मास में पड़ने वाली छठ के जैसी ही होती है।
छठ पूजा में मुख्य रूप से प्रकृति प्रदत्त समाग्री को ही प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। जैसे ईंख-अदरख, मूली, कच्ची हल्दी अरवी सुथनी बोड़ी गागल नींबू, पान, सुपारी, लौंग, इलायची के साथ केला नारियल सिंघाड़ा एवं अन्य ऋतुफल आदि शामिल होते है। साथ ही इस व्रत में आटे और गुड़ और शुद्ध देशी घी के मिश्रण से तैयार ठेकुआ को चढाने का विशेष परंपरा है। इस पर्व की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस पर्व में डूबते हुए सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है।
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प्रशासन तैयारियों में जुटी
इधर, प्रशासनिक तैयारियां भी पूरी कर ली गई हैं। टेल्को क्षेत्र में बने छठ घाटों में भी तैयारी जोर-शोर से चल रही है। छठ पूजा समिति पूरी आस्था के साथ छठ घाटों की साफ-सफाई में जुटी है। तालाबों में भी कृत्रिम पानी की व्यवस्था कराई जा रही है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु चैती छठ करते हैं। इसको ध्यान में रखते हुए जिला प्रशासन तैयारियों में जुटी हुई है। छठ पूजा समिति भी अपने स्तर से हर संभव प्रयास कर रही है, ताकि व्रतियों को किसी तरह की परेशानियों का सामना ना करना पड़े।