रूस के लूना-25 के चांद से टकराकर क्रैश होने के बाद पूरी दुनिया में अब चंद्रयान 3 की चर्चा तेज हो गई है। इसकी वजह है कि चांद के अंतिम कक्षा में लूना-25 को स्थापित करने से पहले ही उसमें तकनीकी खामी आ गई थी और इस मिशन पर आशंका के बादल मंडराने लगे थे। वहीं दूसरी तरफ चंद्रयान-3 सफलतापूर्वक चांद के सबसे छोटे कक्ष में 25 किलोमीटर की न्यूनतम ऑर्बिट में पहुंच चुका है।
भारत का चंद्रयान-3 जब चांद की पहली कक्षा में प्रवेश कर रहा था, तब रूस ने धरती से लूना-25 को गत 11 अगस्त को लॉन्च किया और महज चार दिनों में चांद की कक्षा में पहुंचा दिया था। दोनों ही चंद्र मिशनों का लक्ष्य चांद के उस दक्षिणी हिस्से में उतरना रहा, जहां आज तक दुनिया के किसी भी देश का चंद्र मिशन लैंड नहीं कर सका है। लूना-25 को चंद्रयान 3 से तीन दिन पहले ही चांद के दक्षिणी हिस्से में सॉफ्ट लैंडिंग करनी थी लेकिन 20 अगस्त को अपराह्न अचानक खबर आई कि रूस का चंद्र मिशन फेल हो गया है क्योंकि लूना 25 नियंत्रण खोकर अज्ञात ऑर्बिट में पहुंच गया। रूस की अंतरिक्ष एजेंसी रॉसकॉसमॉस उससे संपर्क नहीं कर पाई।
रॉसकॉसमॉस की ओर से 20 अगस्त को अपराह्न बयान जारी कर कहा गया है कि उपकरण एक अप्रत्याशित कक्षा में चला गया और चंद्रमा की सतह से टकराव के परिणामस्वरूप इसका अस्तित्व समाप्त हो गया है।
अब चंद्रयान-3 पर निगाहें
इसके बाद अब भारत समेत पूरी दुनिया में चंद्रयान-3 की चर्चा तेज हो गई है। अगर सफलतापूर्वक भारत का यह महत्वाकांक्षी मिशन चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग कर जाता है तो भारत चांद के इस हिस्से पर उतरने वाला दुनिया का पहला देश होगा। वैसे भी चंद्रमा से संबंधित जितने भी अभियान हुए हैं उसमें भारत का चंद्रयान-1 काफी देर से ही लेकिन सबसे अधिक प्रभावी परिणाम लेकर आया था। भारत का चंद्रयान-1 से ही यह स्पष्ट हुआ था कि चांद के दक्षिणी ध्रुव के करीब जमे हुए बर्फ के सूक्ष्म कण मिले थे। इससे इस बात के कयास लगाए गए थे कि दक्षिणी हिस्से जहां अरबों वर्षों से सूरज की रोशनी नहीं पहुंची है वहां जमी हुई बर्फ की शक्ल में पानी हो सकता है। इसके बाद अमेरिका, रूस और चीन समेत दुनिया भर के देशों का रुख चांद के दक्षिणी हिस्से की ओर मुड़ गया था। इस बीच चंद्रयान-3 के साथ ही रूस ने जब लूना 25 को लांच किया था तो कौन पहले उस हिस्से पर उतरेगा और कौन सा मिशन अधिक सफल होगा, इसको लेकर दुनिया भर में चर्चा चल रही थी।
आखिर क्या हुआ लूना-25 के साथ?
इस पर इसरो के पूर्व वैज्ञानिक तपन मिश्रा ने रविवार अपराह्न हिन्दुस्थान समाचार से विशेष बातचीत में कहा कि लूना 25 चांद की सतह से टकराया है या नहीं, इस बारे में फिलहाल स्थिति स्पष्ट नहीं है। रूस की स्पेस एजेंसी ने केवल आकलन किया है कि संभवतः चांद की सतह से टकराकर वह क्रैश कर गया है। इसकी वजह है कि धरती से डीआर्बिटिंग के लिए भेजा गया कमान प्रभावी नहीं हुआ और लूना 25 अज्ञात ऑर्बिट में कहीं गुम हो गया, जिससे संपर्क नहीं हो पा रहा है। अब चंद्रयान-3 को लेकर भी दबाव बढ़ गया है।
उन्होंने बताया कि वैसे तो अंतरिक्ष मिशन प्रतिद्वंद्विता के लिए नहीं होते और अज्ञात वैज्ञानिक पहलुओं की खोज के असीमित लक्ष्य के साथ लॉन्च किए जाते हैं। चंद्रयान-3 भी रूस अथवा किसी दूसरे देश से प्रतिद्वंदिता के लिए लॉन्च नहीं किया गया है, बल्कि इसका मकसद चांद के उस हिस्से पर सॉफ्ट लैंडिंग करना है जहां सूरज की रोशनी आज तक नहीं पहुंची है। यहां का वातावरण कैसा है, खनिज कैसे हैं, इस बारे में रिसर्च ही पहली प्राथमिकता है। इसलिए लूना-25 के क्रैश हो जाने के बावजूद चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग को लेकर बहुत अधिक आश्वस्त होना जल्दबाजी होगी।
रूस का मिशन चांद फेल, लूना-25 दक्षिणी ध्रुव के पास क्रैश
चंद्रयान 3 की सफल लैंडिंग से दुनिया भर के स्पेस मिशन में आएंगे बदलाव
उन्होंने कहा कि उस हिस्से में लैंडिंग चुनौतीपूर्ण है। चंद्रयान-2 के आंकड़े के आधार पर चंद्रयान-3 मिशन बेहद महत्वपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि चांद के उस हिस्से की तस्वीर और सटीक डाटा हमारे पास है। इसके अलावा चंद्रयान-3 पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक पर आधारित है। इसलिए इसकी सॉफ्ट लैंडिंग पहली प्राथमिकता है। सफलतापूर्वक चंद्रयान-3 अगर लैंड कर जाता है तो यह अंतरिक्ष की दुनिया में भारत का सबसे मजबूत और अचूक कदम होगा। इसके बाद दुनिया भर का अंतरिक्ष मिशन भारत के कदमों से निर्धारित होंगे। उन्होंने कहा कि किसी भी दूसरे ग्रह अथवा उपग्रह पर स्पेसक्राफ्ट भेजा जाता है तो उसे धरती से लांच करना पड़ता है जिसका गुरुत्वाकर्षण बहुत अधिक होता है और दूरी भी अधिक है। वहीं चांद पर अनुकूल परिस्थिति ढूंढ ली जाती है तो वहां से बाकी स्पेस मिशन किए जा सकेंगे। इसके अलावा वहां ईंधन भी उपलब्ध है जो रॉकेट की गति बढ़ाने और कम खर्च में उपलब्ध हो सकेगा। चंद्रयान-3 का सफलतापूर्वक लैंड होना पूरी दुनिया के लिए लाभकारी सिद्ध होने वाला है। इसके बाद पहली बार ऐसा होगा जब भारत चांद का एक-एक आंकड़ा आंखों देखी रखेगा।
23 अगस्त को ही क्यों होगी लैंडिंग
इसके बारे में स्थिति स्पष्ट करते हुए तपन मिश्रा ने कहा कि 23 अगस्त को चांद पर चंद्रयान-3 को उतारने के पीछे भी वजह बहुत खास है। इसमें लैंडर और रोवर दोनों सोलर पैनल से जुड़े हुए हैं और 23 अगस्त को चांद पर सूर्योदय होगा। इसलिए सूरज की रोशनी में दोनों यंत्र बखूबी काम कर पाएंगे। खास बात यह है कि चांद का एक दिन धरती के 14 दिनों के बराबर होता है। इसलिए तकनीकी तौर पर चंद्रयान-3 चंद्रमा के दिन के हिसाब से एक ही दिन काम करेगा लेकिन धरती के दिन के हिसाब से 14 दिन होगा। इसलिए हमें लैंडिंग की जल्दी नहीं है। 23 की जगह 24 अगस्त को भी लैंडिंग की जाएगी तो भी वह अच्छी रणनीति होगी। क्योंकि हम धीरे-धीरे चांद के सतह के करीब होंगे, सतह पर मौजूद आकृतियों के अनुसार अपनी गति और दिशा तय कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग निश्चित तौर पर अंतरिक्ष में भारत का सबसे मजबूत कदम होगा।